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78 की उम्र में भी राजनीति की जमीन पर सधे कदम

locationबैंगलोरPublished: Feb 27, 2021 10:20:50 pm

Submitted by:

Rajeev Mishra

चतुर राजनीतिक चालों से विरोधियों को किया पस्ततमाम अटकलों को धता बता टिके रहे मजबूती सेआसान नहीं आलाकमान के लिए ढूंढना विकल्प

78 की उम्र में भी राजनीति की जमीन पर सधे कदम

78 की उम्र में भी राजनीति की जमीन पर सधे कदम

बेंगलूरु.
उम्र के साथ बढ़ती चुनौतियों के बीच मुख्यमंत्री बीएस येडियूरप्पा ने शनिवार को अपना 78 वां जन्मदिन सादगी से मनाया। भाजपा में 75 साल से अधिक उम्र के नेताओं को पद नहीं देने के नियम और उनके विकल्प की तलाश को देखते हुए एक साल पहले (जब येडियूरप्पा उम्र के 77 वें पड़ाव पर पहुंचे) उनके करीबियों समेत कई नेताओं व राजनीतिक विश्लेषकों को विश्वास नहीं था कि 78 वां जन्मदिन बतौर मुख्यमंत्री मनाएंगे। लेकिन, दिग्गज लिंगायत नेता ने तमाम राजनतिक गणनाओं को गलत साबित कर दिया साथ ही ऐसे कोई संकेत भी नहीं है कि आलाकमान को येडियूरप्पा का विकल्प मिल गया हो।
हालांकि, ऐसा नहीं है कि केंद्रीय नेतृत्व ने येडियूरप्पा का विकल्प ढूंढना छोड़ दिया है लेकिन, जातीय अथवा क्षेत्रीय पहचान के साथ अन्य मानदंडों पर येडियूरप्पा का स्थान ले सके ऐसा कोई विकल्प नहीं मिला। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा ‘सभी जानते हैं कि येडियूरप्पा की उम्र्र बढ़ रही है। पार्टी को उनका विकल्प चाहिए। एक ऐसा विकल्प जो नए विचारों और नई ऊर्जा के साथ प्रशासनिक तंत्र को एक नया जीवन प्रदान करे। लेकिन, ऐसा लगता है कि अभी तक ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व वाले नेता की खोज पूरी नहीं हो पाई है। लेकिन, इसका अर्थ यह नहीं है कि वह पूरी तरह सुरक्षित हैं। गुटबंदी, भ्रष्टाचार और वंशवाद की शिकायतों के कारण केंद्रीय नेतृत्व की उनपर नजदीकी नजर है।
अगले चुनाव में होंगे पार्टी का चेहरा?
एक तरफ येडियूरप्पा विरोधियों का कहना है कि उनपर लगा कोई भी आरोप अगर कानूनी उलझन बनता है तो उनके विकल्प की तलाश जल्द पूरी हो सकती है। वहीं, समर्थकों का कहना है कि अगर यडियूरप्पा बतौर मुख्यमंत्री एक साल का कार्यकाल और पूरा कर लेते हैं तो वे अगले चुनाव में भी पार्टी का चेहरा होंगे। दोनों ही धड़ों की नजर पार्टी हाइकमान के अगले कदम पर टिकी हुई है।
विरोधी भी एक सीमा में
पार्टी के रणनीतिकारों का एक वर्ग यह मानता है कि वर्ष 2008 से ही कई नेताओं को राजनीतिक तौर पर आगे बढऩे के अवसर दिए गए। कुछ नेताओं ने बतौर मंत्री काम तो अच्छा किया लेकिन, राजनीतिक रूप से खुद को सशक्त नहीं कर पाए। येडियूरप्पा की एक बड़ी खूबी यह है कि वह आम आदमी के नब्ज को बेहतर समझते हैं। वहीं, राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के बावजूद उनके विरोधी भी नहीं चाहते कि सरकार गिरे। सत्ता पर पकड़ बनाए रखने की जरूरत को रेखांकित करते हुए हाल ही में पार्टी के महासचिव और प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह ने विरोधियों को हिदायत दी थी कि व्यक्तिगत मतभेदों को भुलाकर पार्टी की विचारधारा को प्राथमिकता दें।
हिंदुत्व और आरक्षण
दरअसल, पिछले चार दशकों से येडियूरप्पा ने जिस तरह की चुनौतियों का सामना किया है वैसा संभवत: कम ही नेताओं ने किया होगा। खुद की कुर्सी खतरे में होने के बावजूद वे पूरे आत्मविश्वास से वर्ष 2023 के विधानसभा चुनावों में पार्टी की जीत के लिए काम करने का दावा करते हैं। भले ही असंतोष और असहमति का असर सरकार पर पड़ा है लेकिन, येडियूरप्पा उन कुशल राजनीतिज्ञों में से एक हैं जो अपने विरोधियों के साथ वैसे ही निपट पाए जैसा निपटना चाहते थे। एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि येडियूरप्पा भाजपा के हिंदुत्व आधारित राजनीति के विपरीत आरक्षण आधारित राजनीतिक को खुद पुनर्जीवित कर रहे हैं। आरक्षण और हिंदुत्व दोनों एक साथ नहीं चल सकते। येडियूरप्पा की पहचान हिंदुत्व आधारित राजनीति से नहीं है। वह भाजपा की दक्षिण नीति में भी फिट नहीं बैठते जो हिंदुत्व आधारित राजनीति के दम पर तमिलनाडु, केरल अथवा आंध्र में जड़े जमाने की कोशिश कर रही है। इन तमाम उठापठक के बीच नेतृत्व परिवर्तन को लेकर सस्पेंस कायम है।
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