30 फीसदी मरीज कर रहे योगाभ्यास
एडवांस्ड सेंटर फॉर योग योजना के पूर्व निदेशक डॉ. बी. एन. गंगाधर ने बताया कि घबराहट, सिजोफ्रेनिया, तनाव, ओसीडी, डिमेन्सिया, अनिद्रा, माइग्रेन, कमर दर्द आदि के कई मरीजों को ठीक करने के लिए योग विशेषज्ञों की टीम एकीकृत उपचार मॉडल यानी दवाओं के साथ योग क्रियाओं का सहारा ले रही है। निम्हांस आने वाले करीब 30 फीसदी मरीजों को चिकित्सक योगाभ्यास के लिए भेजते हैं। बीमारी और मरीज की हालत के अनुसार योग क्रियाओं का चयन करते हैं। अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) पीडि़त बच्चों सहित मिर्गी और सिजोफ्रेनिया के मरीजों पर योग के प्रभाव को लेकर अलग से शोध हो रहा है।
मस्तिष्क और शरीर का प्रभावी संवाद
मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉ. शिवराम बी. ने बताया कि मस्तिष्क की क्रियाशीलता और मरीजों के व्यवहार पर योग के प्रभाव पर यहां शोध भी जारी है।
मस्तिष्क और शरीर के संवाद को संतुलित करने में योग मदद कर रहा है। मरीज की सामाजिक संज्ञानात्मक क्षमताएं बढ़ती हैं। उदाहरण के तौर पर सिजोफ्रेनिया का मरीज खुद को बाहरी दुनिया से अलग कर लेता है लेकिन योग दोनों को एक करता है। घबराहट, अवसाद और तनाव से जूझ रहे कई मरीजों को एक सिमित अवधि तक दवाओं के साथ योग थेरेपी दी गई। जांच में कई मरीजों के तनाव हार्मोन कोर्टिसोल में गिरावट देखने को मिली।
अवसाद निरोधक दवाओं की जरूरत न हो तो योग बेहतर विकल्प
मनोवैज्ञानिक, सामाजिक जिम्मेदारियां, यौन उत्पीडऩ, गर्भावस्था, प्रसव और जैविक आदि कारणों से महिलाओं को अवसाद का ज्यादा खतरा रहता है। भूख में कमी, अवसाद, निराशा और आत्महत्या की प्रवृत्ति पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में ज्यादा देखी गई है। अवसाद निरोधक दवाओं की जरूरत न हो तो योग बेहतर विकल्प है। अवसाद के मरीज दो से चार सप्ताह तक योग क्रियाएं सीख कर आजीवन इसका अभ्यास कर सकते हैं।
सकारात्मक जीवन का जवाब
शोध बताते हैं कि योगासन और प्राणायाम अवसाद निरोधक दवाइयों के समकक्ष बेहतर परिणाम देते हैं। जीवनशैली में बदलाव, नियमित खानपान, योगाभ्यास और नियमित व्यायाम सकारात्मक जीवन का जवाब है।