मैसूरु. महावीर जिनालय में जैनाचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने धर्मसभा में कहा कि चार गतियों में अनेकानेक दुखों को सहन करते हुए जगत में रह रहे सभी जीवों की भवयात्रा अनादिकाल से चल रही है। उन्होंने कहा कि इस जीवन में भी सुख दुख रहते हुए जीवन यात्रा भी चल रही है और मृत्यु होने के बाद अपनी श्मशान यात्रा भी अवश्य होनी है। इन सारी यात्राओं का तात्पर्य से कोई अर्थ नहीं है। इन यात्राओं का अंत लाने के लिए तीर्थ स्थानों की विधिपूर्वक आराधना करनी चाहिए। आत्मा का रक्षण करने का सामथ्र्य जिसमें हो वे तीर्थ है। प्रत्येक श्रावक को वर्ष में कम से कम एक बार तीर्थ स्थानों में आकर परमात्मा के साथ संबंध जोडऩा चाहिए।