दुर्घटनाग्रस्त गाड़ी को देखने से साफ है कि टायर फटने से ही हादसा हुआ है। टायर पूरी तरह घिस चुका है। इसके अलावा उसमें कई कट भी नजर आए। बावजूद इसे सडक़ों पर उतार दिया गया। गंभीर बात यह है कि एम्बुलेंस की मरम्मत कार्य के बाद उसकी जांच करने का प्रावधान ही नहीं है। इस संबंध में डीपीएम ने कहा कि मरम्मत के बाद कम्पनी की ओर फिटनेस जांचने का प्रावधान है, लेकिन वो विभाग के सुपुर्द नहीं की जाती है। जिसके बाद सवाल यह उठता है कि यदि गाड़ी की फिटनेस की गई तो कमजोर टायर के साथ गाड़ी ऑनरोड कैसे आ गई।
गत माह में कई बार गाडिय़ों में खामियां होने के बाद भी एम्बुलेंस के दौडऩे की बात सामने आ चुकी है। बावजूद जिला कार्यक्रम अधिकारी की ओर से ठोस कार्रवाई करने की जहमत नहीं उठाई गई। उक्त घटना के बाद भी विभाग के एक भी अधिकारी ने न तो घटनास्थल पर जाकर सत्यता जांचने की जहमत उठाई और न ही घायलों से जानकारी ली। मामले में डीपीएम ललित सिंह झाला ने मौका मुआयना करने की बजाय कम्पनी के अधिकारियों की बात मान गाड़ी के सामने रास्ते में गाय आ जाने की बात कही। साथ ही कहा कि दूसरे दिन मौके पर जाकर देखेंगे। यदि टायर फटने की बात समाने आती है तो कम्पनी को लिखकर देंगे।
गत वर्ष नवम्बर माह में मोरडी मिल के पास भी गाड़ी में तकनीकी खामी के कारण दुर्घटना हुई थी। गनोड़ा से हृदयरोगी को लेकर आ रही यह 108 एम्बुलेंस मोरड़ी मिल के गेट के पास पलट गई थी। सज्जनगढ़ में 104 का स्टेयरिंग फेल होने से कुशलगढ़ 108 में कार्यरत कार्मिक और उक्त 104 का पायलट घायल हो गए थे। इसके अलावा मरीजों के ले जाने के दौरान भी कई हादसे हुए।
एम्बुलेंस संचालक कम्पनी और चिकित्सा विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों की कार्यशैली का आलम यह है कि उक्त गाड़ी करीब ढाई माह से मरम्मत कार्य के लिए गई थी व 27 अगस्त को ऑनरोड आई थी। कुछ घंटों बाद ही टायर फटने से हादसा हो गया। जिससे स्पष्ट होता है कि गाड़ी की मरम्मत के बाद ऑनरोड करने से पहले जांच ही नहीं की गई और बिना जांच के ही उसे सडक़ पर फर्राटा भरने उतार दिया गया।