निरोधात्मक कार्रवाई इसलिए है नाकाफी : – कायदे से नीम-हकीमों और झोलाछाप के ठिकानों पर कार्रवाई चिकित्सा विभाग के ड्रग इंस्पेक्टर, क्षेत्र के चिकित्सा अधिकारी, पुलिस और सीएमएचओ या उसके प्रतिनिधि की कमेटी या साझा टीम बनाकर पहले शिड्यूट तय कर होनी चाहिए। इससे मौके से स्टेबलिशमेंट एक्ट के तहत पंजीयन, देय सुविधा के लिए अधिकृत होने की योग्यता, प्रतिबंधित दवाइयों की बरामदगी सहित विभिन्न पहलुओं की पड़ताल कर केस दर्ज कराने के पर्याप्त साक्ष्य बटोरे जा सकें। चूंकि ड्रग इंस्पेक्टर, सीएमएचओ या प्रतिनिधि सभी जगह साथ पहुंचने मुमकिन नहीं है। ऐसे में विकल्प क्षेत्र के एमओआईसी हैं, जिनकी मौजूदगी में पुलिस की ओर से दुकान, दवाखाना सील करनी चाहिए ताकि बाद में सबूत जुटाकर पुख्ता कार्रवाई हो सके। पुलिस ने सीआरपीसी की धारा 107-151 के तहत झोलाछाप डॉक्टरों की गिरफ्तारी कर निरोधात्मक कार्रवाई की। चूंकि इस दौरान इनके ठिकाने सील नहीं किए गए, इससे कुछ घंटों या अगले दिन छूटने पर आरोपियों को सबूत हटाने और दूसरी जगह शिफ्ट होने का मौका मिल गया। साथ ही इनके खिलाफ केस और कोर्ट में सजा दिलवाने की पुख्ता कार्रवाई नहीं होने से यह चिकित्सा क्षेत्र में संगठित माफिया के खिलाफ महज छेड़छाड़ प्रतीत हुई। गौरतलब है कि दूसरी ओर भवानी जोशी जब चिकित्सा और राज्यमंत्री थे, तब ऐसी ही कार्रवाई जिलेभर में हुई थी। हालांकि इस बार पूरे उदयपुर संभाग में यह कार्रवाई की जा रही है। खास बात तो यह सामने आई है कि अधिकांश छोलाछाप जो कि पश्चिमी बंगाल के है और एक आता है तो कुछ समय बाद अपने रिश्तेदार को भी बुला लेते है। इसी तर्ज पर काम होता है।
अधिकारियों के अपने-अपने तर्क : – बांसवाड़ा सीएमएचओ डॉ. एचएल ताबियार का कहना है कि सुधार के लिए पुलिस का आगे आकर सहयोग करना अच्छी बात है। विभाग की ओर से प्रशासन को सूचियां देने के बाद से हम भी मदद की प्रतीक्षा में थे। कार्रवाई के समय एमओआईसी की मौजूदगी में अवैध क्लीनिक सील करवाकर सबूत जुटाते हुए एफआईआर दर्ज करवाना सही होता। ऐसा नहीं किया, तो अब बिना सबूत आगे कोर्ट में कोई जवाब कैसे देगा। 27 दिसंबर की शाम को पुलिस अधीक्षक के एसएमएस पर मैंने सभी एमओआईसी को निर्देश दिए थे। मैं इसके एक दिन पहले से छुट्टी पर हूं। आगे क्या हुआ, जानकारी लेकर कार्रवाई में जुड़ेंगे। इधर, बांसवाड़ा पुलिस अधीक्षक केसरसिंह शेखावत ने कहा कि झोलाछाप के इलाज से एक जने की मौत के बाद कार्रवाई शुरू की गई। लोगों के जीवन की सुरक्षा का जिम्मा राज्य का है और इसका निर्वहन पुलिस करती है। खतरा किसी भी कारण से हो, कोई जिम्मेदार आगे नहीं आ रहा तो पुलिस ने अपने क्षेत्राधिकार में संज्ञेय अपराध रोकने के लिए निरोधात्मक कार्रवाई की है और आगे भी करेंगे। एफआईआर का दायित्व चिकित्सा विभाग का है। निष्ठा की कमी है। कलक्टर, सीएमएचओ को सूचित किया पर पुलिस को सहयोग नहीं मिला। इस बारे में सरकार को कार्रवाई के लिए लिखेंगे।