scriptगुजरात ने दी थी माही बांध बनाने की 55 फीसदी लागत, इसलिए राजस्थान को अबतक करनी पड़ रही है माही के पानी की ‘पहरेदारी’ | Agreement between Gujarat and Rajasthan on Mahi water | Patrika News

गुजरात ने दी थी माही बांध बनाने की 55 फीसदी लागत, इसलिए राजस्थान को अबतक करनी पड़ रही है माही के पानी की ‘पहरेदारी’

locationबांसवाड़ाPublished: Aug 27, 2019 12:26:47 pm

Submitted by:

Varun Bhatt

– Mahi Dam Banswara, Rain In Rajasthan- आखिर कब तक करेंगे माही के पानी की ‘पहरेदारी’- इस वर्ष करीब 20 टीएमसी पानी व्यर्थ बह चुका- गुजरात से समझौते के कारण आरक्षित रखना पड़ रहा 40 टीएमसी पानी- दोनों राज्य सरकारों के स्तर पर नहीं हो रहा निबटारा

गुजरात ने दी थी माही बांध बनाने की 55 फीसदी लागत, इसलिए राजस्थान को अबतक करनी पड़ रही है माही के पानी की ‘पहरेदारी’

गुजरात ने दी थी माही बांध बनाने की 55 फीसदी लागत, इसलिए राजस्थान को अबतक करनी पड़ रही है माही के पानी की ‘पहरेदारी’

बांसवाड़ा. जिले की जीवनदायिनी मानी जाने वाली माही नदी पर बने माही बांध के लिए राजस्थान और गुजरात के बीच दशकों पूर्व हुए समझौते के कारण राजस्थान को माही के पानी की मानो ‘पहरेदारी’ करनी पड़ रही है। बांध की भराव क्षमता 77 टीएमसी की है और गुजरात से समझौते के कारण बांध में 40 टीएमसी पानी आरक्षित रखना पड़ता है। इसके अतिरिक्त मानसून सीजन में बांध के गेट खोलने पर कई टीएमसी पानी भी गुजरात जा रहा है। इस बार भी अब तक करीब 20 टीएमसी पानी बांध के गेट खोलने के कारण बह चुका है। इसके उपरांत भी गुजरात के लिए पानी रखना ही पड़ेगा।
यह हुआ था समझौता
राजस्थान व गुजरात सरकार के मध्य 10 जनवरी 1966 को समझौता हुआ था। इसके तहत गुजरात सरकार ने माही बांध निर्माण में 55 फीसदी लागत देने व 40 टीएमसी पानी लेने पर सहमति बनी। जब नर्मदा का पानी गुजरात के खेड़ा जिले में पहुंच जाएगा, तब गुजरात राजस्थान के माही बांध का पानी उपयोग में नहीं लेगा और उस पानी का उपयोग राजस्थान में ही होगा। वर्षों पहले नर्मदा का पानी खेड़ा तक पहुंच चुका है। बावजूद समझौते की पालना नहीं हो रही है और गुजरात ने माही के पानी पर हक बरकरार रखा है।
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…तो बदल जाए तस्वीर
राजस्थान और गुजरात सरकार स्तर पर समझौते की पालना होने पर बांसवाड़ा-डूंगरपुर सहित प्रदेश के कई जिलों में सिंचाई सुविधा की तस्वीर ही बदल जाएगी। पहले भी माही बांध का पानी राजसमंद और अन्य जिलों में ले जाने की घोषणाएं हुई हैं, लेकिन आरक्षित पानी के कारण मामला हमेशा खटाई में पड़ता चला गया है।
विकास की असीम संभावनाएं
वागड़ के दूसरे जिले डूंगरपुर में माही का पानी पहुंचाने के लिए बनाई जा रही भीखाभाई नहर का कार्य भी अभी तक पूरा नहीं हुआ है। माही का पानी अभी भी असीम संभावनाएं समेटे हुए है। वागड़ के अब तक अछूते इलाकों तक माही का पानी पहुंचाकर उन्हें तर किया जा सकता है। बिजली उत्पादन कई गुना बढ़ सकता है। हजारों हैक्टेयर जमीन और सिंचित कर अनाज का लाखों टन उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।
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माही बांध एक नजर में
माही बांध की प्रथम इकाई के तहत 435 मीटर लंबा एवं 74.50 मीटर ऊंचा कंकरीट का बांध बनाया है। इसके दायें-बायें किनारे पर 2764 मीटर लंबा मिट्टी के बांध का निर्माण किया है। बांध पर 16 रेडियल गेट (15 मीटर गुणा 13 मीटर) के हैं। माही बांध का जलग्रहण क्षेत्र 6149 वर्ग किलोमीटर है। जल तल 281.50 मीटर तथा सामान्य जल तल 280.75 मीटर है।
राजनीतिक इच्छाशक्ति पर ही समाधान
समझौते की फांस के कारण 40 टीएमसी पानी का उपयोग राजस्थान के लिए नहीं हो पा रहा है। सशक्त राजनीतिक पहल के अभाव में गुजरात इस ओर तवज्जो नहीं दे रहा है, जबकि इसका समाधान राजनीतिक इच्छाशक्ति और पहल पर ही हो सकता है।
इनका कहना है
माही बांध में 40 टीएमसी पानी गुजरात के लिए आरक्षित रखा जाता है। समझौते को लेकर निर्णय राज्य सरकार के स्तर का है। यह पानी राजस्थान को मिल जाए तो वागड़ सहित अन्य जिलों में भी पेयजल, सिंचाई आदि के लिए इसका उपयोग संभव हो सकेगा।
प्रहलादराय खोइवाल, अधीक्षण अभियंता माही परियोजना
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