राजस्थान व गुजरात सरकार के मध्य 10 जनवरी 1966 को समझौता हुआ था। इसके तहत गुजरात सरकार ने माही बांध निर्माण में 55 फीसदी लागत देने व 40 टीएमसी पानी लेने पर सहमति बनी। जब नर्मदा का पानी गुजरात के खेड़ा जिले में पहुंच जाएगा, तब गुजरात राजस्थान के माही बांध का पानी उपयोग में नहीं लेगा और उस पानी का उपयोग राजस्थान में ही होगा। वर्षों पहले नर्मदा का पानी खेड़ा तक पहुंच चुका है। बावजूद समझौते की पालना नहीं हो रही है और गुजरात ने माही के पानी पर हक बरकरार रखा है।
राजस्थान और गुजरात सरकार स्तर पर समझौते की पालना होने पर बांसवाड़ा-डूंगरपुर सहित प्रदेश के कई जिलों में सिंचाई सुविधा की तस्वीर ही बदल जाएगी। पहले भी माही बांध का पानी राजसमंद और अन्य जिलों में ले जाने की घोषणाएं हुई हैं, लेकिन आरक्षित पानी के कारण मामला हमेशा खटाई में पड़ता चला गया है।
वागड़ के दूसरे जिले डूंगरपुर में माही का पानी पहुंचाने के लिए बनाई जा रही भीखाभाई नहर का कार्य भी अभी तक पूरा नहीं हुआ है। माही का पानी अभी भी असीम संभावनाएं समेटे हुए है। वागड़ के अब तक अछूते इलाकों तक माही का पानी पहुंचाकर उन्हें तर किया जा सकता है। बिजली उत्पादन कई गुना बढ़ सकता है। हजारों हैक्टेयर जमीन और सिंचित कर अनाज का लाखों टन उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।
माही बांध की प्रथम इकाई के तहत 435 मीटर लंबा एवं 74.50 मीटर ऊंचा कंकरीट का बांध बनाया है। इसके दायें-बायें किनारे पर 2764 मीटर लंबा मिट्टी के बांध का निर्माण किया है। बांध पर 16 रेडियल गेट (15 मीटर गुणा 13 मीटर) के हैं। माही बांध का जलग्रहण क्षेत्र 6149 वर्ग किलोमीटर है। जल तल 281.50 मीटर तथा सामान्य जल तल 280.75 मीटर है।
समझौते की फांस के कारण 40 टीएमसी पानी का उपयोग राजस्थान के लिए नहीं हो पा रहा है। सशक्त राजनीतिक पहल के अभाव में गुजरात इस ओर तवज्जो नहीं दे रहा है, जबकि इसका समाधान राजनीतिक इच्छाशक्ति और पहल पर ही हो सकता है।
माही बांध में 40 टीएमसी पानी गुजरात के लिए आरक्षित रखा जाता है। समझौते को लेकर निर्णय राज्य सरकार के स्तर का है। यह पानी राजस्थान को मिल जाए तो वागड़ सहित अन्य जिलों में भी पेयजल, सिंचाई आदि के लिए इसका उपयोग संभव हो सकेगा।
प्रहलादराय खोइवाल, अधीक्षण अभियंता माही परियोजना