पत्रिका ने पड़ताल की तो सामने आया कि प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा विभाग की ओर से जिले में उच्च माध्यमिक स्तर के 360 विद्यालयों का संचालन किया जा रहा है। इनमें 3-3 रसोइयें है। माध्यमिक स्तर के 79 स्कूल हैं औरइनमें भी तीन-तीन खाना पकाने वाले हैं। उच्च प्राथमिक स्तर की 456 विद्यालय हैं, जहां दो दो रसोइयें कार्यरत हैं। 1701 प्राथमिक विद्यालय हंै जहां एक एक रसोइया काम करता है। इस तरह से कुल 4386 रसोइये इन विद्यालयों में कार्यरत हैं। जिनका प्रतिमाह मानदेय के रूप में 1320 रुपए प्रति रसोइये के हिसाब से एक माह का 57 लाख 89 हजार 520 रुपए और यही राशि तीन माह की एक करोड़ 73 लाख 68 हजार 560 रुपए होती है।
एक किलो सब्जी आए इतना दैनिक मानदेय एक रसोइयों को सरकार की ओर से एक माह के 1320 रुपए की राशि दी जाती है। इस राशि को दैनिक राशि में बदले तो महज 44 रुपए की राशि होती है। एक रसोइए ने कहा कि जब हमें एक किलो सब्जी की रेट ही एक दिन में दी जा रही है, फिर इतना सा पैसा देने में आनाकानी हो रही है। रसोइयों ने बताया कि हम गरीब परिवार के लोग हंै और महज 1300 रुपए मासिक की नौकरी में एक ही जगह पर बंध कर रह गए हैं। स्कूलों की छुट्टी के अलावा हररोज आना पड़ता है, अवकाश भी नहीं मिलता है फिर भी सरकार हमारा सहयोग नहीं करती है।
यों बताई रसोइयों ने पीड़ा राप्रावि छत्रसालपुर की बुलकीबाई ने बताया कि हम हमारा पेट कैसे पालें, क्योंकि तीन माह से रुपए ही नहीं मिले है। अब तो दिवाली आ गई है। राउप्रावि टांडी महुडी की रसोइया बाई सूरता ने बताया कि पैसे कब आते है, यह पता ही नहीं चलता है। पहले तो हाथ में आते थे और अब बैंक में आते है। लेकिन कई माह से मानदेय नहीं मिला है। राउप्रावि टांडी महुड़ी में गेहूं साफ करती हुई गोती बाई ने बताया कि हमें गेहूं भी हाथ से ही साफ करने पड़ते है जबकि एक दिन में सरकार हमें 44 रुपए ही देती है, इतने रुपए से हमारा घर कैसे चलेगा, इस पर सरकार को विचार करना चाहिए। राउप्रावि पलोदडा के रसोइया शंकर भाई और माया देवी का कहना है कि दिवाली आ गई, कैसे मनाएंगे। हम गरीब लोग है और महीने के 1320 रुपए की नौकरी करते है। इस नौकरी के चक्कर में कहीं जा भी नहीं पाते हैं। सरकार ध्यान दे।
इनका कहना है.. सीडीईओ एंजेलिका पलात का कहना है कि सरकार और विभाग को प्रस्ताव भेजे गए हैं और जल्द ही दिवाली से पहले ही मानदेय का भुगतान करने का प्रयास किया जा रहा है।