महोत्सव के अंतिम दिन भगवान का मोक्ष कल्याणक मनाया गया। सुबह जिनाभिषेक और नित्यार्चन के बाद भगवान के जिनबिंब में मोक्ष कल्याणक की क्रिया की गई। इसके उपरांत जिनबिंब एवं शिखर के कलश, ध्वजदंड स्थापना की बोलियां लगाई गई। प्रतिष्ठा कमेटी के सह मंत्री हेमेंद्र जैन ने बताया कि मूलनायक भगवान मुनिसुव्रतनाथ को मूल वेदी पर विराजमान करने की बोली सुनील सागर युवा संघ ने ली। विधिनायक भगवान को विराजमान करने की बोली सुमतिनाथ नवयुवक मंडल ने ली। ध्वज दंड को शिखर पर स्थापित करने का लाभ विपिन भाई शाह तथा शिखर पर कलश स्थापना करने का लाभ नितेश कुमार कनकमल नायक परिवार को प्राप्त हुआ। गुरु मंदिर में आचार्य आदिसागर महाराज की मूर्ति स्थापना का सौभाग्य कन्हैयालाल सेठ, आचार्य महावीर कीर्ति जी की मूर्ति स्थापना करने का सौभाग्य विनोद जैन, आचार्य विमल सागर महाराज की मूर्ति स्थापना का सौभाग्य चिराग जैन एवं आचार्य सन्मति सागर महाराज की मूर्ति की स्थापना करने का सौभाग्य बलभद्र जगाने को प्राप्त हुआ।
शोभायात्रा में झूमे श्रद्धालु हवन के बाद जुलूस के साथ भगवान को मंदिर तक ले जाया गया, जहां रत्नों की बरसात की गई। शोभायात्रा में कई श्रद्धालु नाचते-गाते हुए चल रहे थे। मंदिर पहुंचने पर पं. भागचंद जैन ने विधि विधान से भगवान को वेदी पर प्रतिष्ठित किया और पूरा पांडाल भगवान के जयकारों से गुंजायमान हो उठा। शहर तथा जिले के गांवों से बड़ी संख्या में आए लोगों की उपस्थिति से जुलूस की शोभा और भव्यता बढ़ती चली गई। जुलूस मंदिर में जाकर समाप्त हुआ। मूर्तियों के नगर भ्रमण के उपरांत वेदी पर विराजित किया गया।
दीक्षा के साक्षी बने श्रद्धालु दोपहर में आचार्य सुनील सागर महाराज ने जैनेश्वरी दीक्षा दी। इसमें बांसवाड़ा निवासी संघस्थ क्षुल्लक शैलेश सागर महाराज को ऐलक दीक्षा दी गई। उन्हें एेलक सूतत्वसागर नया नाम दिया गया। घाटोल निवासी ब्रह्मचारी कांतिलाल को क्षुल्लक दीक्षा देकर क्षुल्लक सत्वसागर नामकरण किया। वहीं तलोद साबरकांठा से आए मुमुक्षु हेमंत भाई को क्षुल्लक दीक्षा प्रदान कर नया नाम क्षुल्लक समत्वसागर रखा गया। जैनेश्वरी दीक्षा की अनुमोदना करने के लिए बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित हुए।