दीपक की मौत के साथ ही पूरे परिवार में मातम पसर गया। दीपक हंसमुख स्वभाव का था। उसका शव जैसे ही गांव पहुंचा तो परिजनों को संभालना मुश्किल हो गया। ग्रामीणों ने मुश्किल से उसकी पत्नी एवं माता-पिता को संभाला।
कुवैत में रोजगाररत हीरालाल पंचाल एवं नाथू ने बताया कि कुवैत में जब किसी भारतीय की मृत्यु हो जाती है तो शव लाने में भारतीय दूतावास का कोई सहयोग नहीं मिल पाता है। पासपोर्ट को निरस्त कराने की भी 30 दिनार फीस देनी पड़ती है। शव का लाने का किराया भी दो सवारी के बराबर चुकाना पड़ता है। जबकि किसी भी पाकिस्तानी की मृत्यु होने पर उन्हें सारी सुविधाएं निशुल्क दी जाती है। अन्य कागजी कार्यवाहीं के नाम पर भी परेशान किया जाता है।