बांसवाड़ा

बांसवाड़ा : सावधान! मौसम की करवट से स्वाइन फ्लू और हार्ट अटैक का खतरा

मावठ और सर्द हवाओं के कारण बड़ा बीमारियों का खतरा, बचाव के लिए सावधानी बेहद जरूरी

बांसवाड़ाDec 07, 2017 / 12:59 pm

Ashish vajpayee

बांसवाड़ा. तीन दिनों में मौसम में अचानक हुए बदलाव ने जिले में स्वाइन फ्लू और हार्ट अटैक के खतरों को बढ़ा दिया है। दरअसल, तापमान के गिरने से स्वाइन फ्लू के वायरस में सक्रियता बढ़ जाती है, वहीं ठंड में हृदयघाात की संभावना भी प्रबल होती है, लेकिन इन दोनों बीमारियों से घबराने की जरूरत नहीं है, सचेत रहने और लक्षण मिलने पर उपचार की जरूरत है। राजस्थान पत्रिका की ओर से स्वाइन फ्लू के उपचार को लेकर पेश है रिपोर्ट-
स्वाइन फ्लू के लक्षण :
बुखार आना, सिर दर्द, गला दुखना, उल्टी- दस्त होना, सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ होना, ब्लड प्रेशर कम हो जाना और कफ में खून आना जैसे लक्षण प्रमुख हैं।
बचाव व कारण :
स्वाइन फ्लू का वायरस एच1 एन1 एक तरह का इंफ्लूएंजा वायरस है। जो एअर इंफ्ेक्शन है। इसमें रोगी खांसी-जुकाम के दौरान भीड़ भरे इलाकों में जाने से बचें। सामान्य रोगी भी अत्यधिक खांसी-जुकाम वाले रोगियों के संपर्क में रहे। साथ ही मास्क का उपयोग करें।
हार्ट अटैक के लक्षण
घबराहट, बेचैनी, बीपी घटना- बढऩा मुख्य लक्षण हैं। इसमें होने वाला दर्द बहुत तेज होता है। जो सीने से शुरू होकर जबड़ों तक या बाएं हिस्से की ओर या पीछे पीठ की ओर बढ़ता है। इसका दर्द रुका हुआ नहीं रहता है।
बचाव व कारण :
सीने में दर्द हो तो आइसो ट्रिल नामक टेबलेट जुबान के नीचे रखें और एस्प्रिन डेढ़ सौ एमजी तुरंत खांए। इन दवाओं के सेवन से हार्ट अटैक का खतरा 50 फीसदी तक कम हो जाता है। इसलिए सदैव इन दोनों दवाओं को पास में रखें। हार्ट अटैक न होने पर इनके सेवन से नुकसान नहीं है।
एलोपैथी
स्वाइन फ्लू में टेमी फ्लू और वैक्सीन का इस्तेमाल किया जाता है। और पूर्व में बचाव के लिए वैक्सिन लगवा सकते हैं। यह दो प्रकार की होती है। एक नोजल और इंजेक्टेबल है। लेकिन ये पुराने वायरस के लक्षणों के आधार पर बनाए गए थे। चूंकि स्वाइन फ्लू का वायरस के लक्षण बदले हुए पाए गए हैं। फिर इन वैक्सिन का उपयोग काफी लाभ देता है और स्वाइन फ्लू से पीडि़त होने पर टेमी फ्लू नामक दवा दी जाती है।
डॉ. निलेश परमार, वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी, बांसवाड़ा
आयुर्वेद
इस पद्धति से रोगी के उपचार के लिए गोजिहवादिक्वाथ और वातश्लेष्मिक ज्वरहर क्वाथ दिया जाता है। गोजिहवादिक्वाथ में मुलेठी, गावजवा, गुलवनफ्सा, लभेडा, छेाटी कटेरी, अडूसा, सौंफ, खूबकला, उन्नाव आदि का काढ़ा बनाकर दिया जाता है। वातश्लेष्मिक ज्वरहर क्वाथ में रेागी को अडूसा, मारंगी, तालीस पत्र मुलेठी, तुलसी, काली मिर्च, लौंग, पिपली का काढ़ा बनाकर दिया जाता है।
डॉ. गणेश शंकर उपाध्याय, आयुर्वेद चिकित्साधिकारी, आयुर्वेद औषद्यालय, एमजी अस्पताल
होम्योपैथी
इस पद्धति में स्वाइन फ्लू का उपचार के लिए रेागी को आर्सेनिक एल्बा 200 पी., ब्रायोनिया एल्ब -200पी. , ड्रोरेसा 200पी., रसटॉक्स 200पी., ड्राइवर्स 200 पी., गेलसीमीयम 200 पी. दी जाती है। इस पद्धति में ऐसी दवा भी है, जो शरीर में इम्यूनिटी को स्ट्रॉंग कर स्वाइन फ्लू होने ही नहीं देती है। इन्फूजियम 200 नामक इस दवा का सिर्फ सिंगल डोज लेने से स्वाइन फ्लू नहीं होता है। लेकिन इसके सेवन के 10 मिनट पहले और 10 मिनट बाद तक कुछ खाना पीना नहीं चाहिए।
डॉ. कमलेश नायक, मेडिकल ऑफिसर, होम्योपैथी, घंटाला
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