ये है बोझ की वजह पूरे जिले में ऑपरेशन से प्रसव कराने की सुविधा एकमात्र एम जी अस्पताल में है। ऐसे में थोडी सी जटिलता सामने आते ही केस एमजी रैफर हो जाता है। फिर अच्छी सुविधा और अच्छे डाक्टर से उपचार की तम्न्ना तो हर किसी में होती ही है। बढ़ते बोझ के बीच ‘कोढ़ में खाज’ की स्थिति यह भी है कि अस्पताल में न तो पर्याप्त संसाधन हैं और न स्टाफ है। ऐसे में कार्मिक भी परेशान और जच्चा- बच्चा भी परेशान।
100 बेड की है एमसीएच विंग अस्पताल में बनाई गई एमसीएचव विंग कुल 100 बेड की है। जहां प्रत्येक वर्ष क्षमता से कहीं ज्यादा संख्या में प्रसव कराए जा रहे हैं। बड़े केंद्रों पर सुविधा ही नहीं
जिले के बड़े केंद्रों घाटोल, गनोड़ा, परतापुर, सज्जनगढ़, बागीदौरा, कुशलगढ़, अरथूना, गांगड़तलाई जैसे सेंटर्स पर भी ऑपरेशन से प्रसव की सुविधा ही नहीं है। ऐसे में प्रसूताओं का एमजी ही ठिकाना रह गया है।
7 चिकित्सकों के जिम्मे हजारों प्रसव महात्मा गांधी अस्पताल में इतनी बड़ी संख्या में प्रसव होने के बाद भी अस्पताल में गायनिक चिकित्सकों की बेहद कमी है। वर्तमान में यहां पर सिर्फ 7 चिकित्सक ही सेवाएं दे रहे हैं। गायनिक टीम के इन्चार्ज के पास प्रसव कराने, साथियों को गाइड करने के अलावा मीटिंग और कैम्प सरीखे अन्य कार्यों की भी जिम्मेदारी है।
एसएनसीयू में भी संघर्ष कम नहीं अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड की क्षमता 12 बेड की है, विशेषज्ञों के अनुसार इस क्षमता के वार्ड वर्ष में 2 हजार मरीजों को सेवाएं देने के लिए सक्षम हैं। इससे ज्यादा बच्चे आते ही व्यवस्था चरमरा जाती है। इस वार्ड में बच्चों की देखभाल के लिए महज 4 चिकित्सक ही हैं।
यह है प्रसव का आंकड़ा वर्ष : कुल प्रसव : ऑपरेशन से : सामान्य
2016 : 8444 : 2285 : 6159
2017 :6874 :1975 : 4891