ग्रामीणों के मुताबिक मौत के शिकार बच्चों में से भी एक दो के भी गले में लच्छे की माला पहनी हुई थी। बीमारी की शिकार एक बच्ची सुमन के गले में भी सोमवार को पत्रिका संवाददाता ने माला देखी। सुमन की मां धूली के मुताबिक बच्ची के गले में यह माला रूपगढ़ में डलवाई थी। उसने बताया कि बच्ची पांच छह दिन से बीमारी थी। उपचार कहीं नहीं कराया। रविवार को चिकित्सा विभाग की टीम गांव में आई थी तब भी बच्ची राशन का गेहूं लेने गई हुई थी।
चिकिन पॉक्स की संभावना कम
शिशु रोग विशेषज्ञ मुकेश भारद्वाज के मुताबिक बच्चों के शरीर पर दाने के पीछे वायरल कारण हो सकता है। दाने चिकनपॉक्स के प्रतीत नहीं हो रहे हैं। यह है अंधविश्वास
ग्रामीणों का मानना है कि बच्चे व अन्य लोगों के शरीर पर दाने हैं जो माताजी (चिकनपॉक्स) हैं। जिसके उपचार के लिए ग्रामीण माला लाकर पीडि़त को पहना देते हैं। पांच दिनों तक उसे कोई उपचार नहीं देते हैं। अंधविश्वास यह है कि गले में पड़ी माला जैसे जैसे लंबी होती है बीमारी ठीक होती जाती है।
शिशु रोग विशेषज्ञ मुकेश भारद्वाज के मुताबिक बच्चों के शरीर पर दाने के पीछे वायरल कारण हो सकता है। दाने चिकनपॉक्स के प्रतीत नहीं हो रहे हैं। यह है अंधविश्वास
ग्रामीणों का मानना है कि बच्चे व अन्य लोगों के शरीर पर दाने हैं जो माताजी (चिकनपॉक्स) हैं। जिसके उपचार के लिए ग्रामीण माला लाकर पीडि़त को पहना देते हैं। पांच दिनों तक उसे कोई उपचार नहीं देते हैं। अंधविश्वास यह है कि गले में पड़ी माला जैसे जैसे लंबी होती है बीमारी ठीक होती जाती है।
50-50 रुपए की बिकती है माला
इन मालाओं को लेकर जब पत्रिका टीम ने पड़ताल की तो सामने आया कि इसे कुछ लोग बनाते हैं। कुशलगढ़ पीपली चौराहे पर मालाओं के एक विके्रता के मुताबिक वह यह माला 50-50 रुपए में ग्रामीणों को बेचते हैं। लोग पीलिया, टाइफाइड, माता निकलने आदि के उपचार के लिए लच्छे की माला ले जाते हैं। वह दिन में 50 से 60 माला तक बेच देता है। बारिश के दिनों में इनकी बिक्री और भी अधिक हो जाती है। माला अन्य स्थानों पर भी बिकती है और इन्हें लोग घर ले जाकर या भोपे के पास जाने पर वे भी पहनाते हैं।
इन मालाओं को लेकर जब पत्रिका टीम ने पड़ताल की तो सामने आया कि इसे कुछ लोग बनाते हैं। कुशलगढ़ पीपली चौराहे पर मालाओं के एक विके्रता के मुताबिक वह यह माला 50-50 रुपए में ग्रामीणों को बेचते हैं। लोग पीलिया, टाइफाइड, माता निकलने आदि के उपचार के लिए लच्छे की माला ले जाते हैं। वह दिन में 50 से 60 माला तक बेच देता है। बारिश के दिनों में इनकी बिक्री और भी अधिक हो जाती है। माला अन्य स्थानों पर भी बिकती है और इन्हें लोग घर ले जाकर या भोपे के पास जाने पर वे भी पहनाते हैं।