बांसवाड़ा : परिवार भूखा ना सोए इसलिए बड़ों की तरह काम करते हैं यह बच्चे, कलम छूटी, हाथ में आए जूठे बर्तन, शराब की बोतल
बाल श्रमिकों ने सुनाई आपबीती

बांसवाड़ा. कोई 10 वर्ष का तो कोई 14 का, कोई कक्षा 6 में पढ़ता था तो कोई कक्षा 7 में। लेकिन अब इन नन्हें हाथों से कलम छूट गई यह सब होने के पीछे गरीबी और पेट की आग बुझाने की मजबूरी है। छोटे भाई ***** सहित परिवार के लोगों का पेट भरा रहे, उन्हें भूखा न सोना पड़े। इसलिए घर के बड़ों की तरह वे भी पढ़ाई छोड़ कर कमाई मजदूरी में लग गए। कोई जूठे बर्तन धोने तो कोई शराब परोसने में लगा और इस तरह दिन, महीने, साल कट रहे हैं। बच्चों का ये दर्द तब सामने आया जब पत्रिका टीम ने मंगलवार को बाल श्रमिकों से उनका दर्द बांटा। पेश है रिपोर्ट -
पिता की कमाई से गुजारा नहीं होता
शराब के एक ढाबे पर महज 10-12 वर्ष का बच्चा। कभी किसी को पापड़ देता, तो कभी सलाद। छोटू की अवाज सुन दूसरी टेबल पर जाता और फरमाइश पर बीयर या शराब की बोतल लाकर देता। कुछ इस रतह काम में व्यस्त बच्चे से जब पत्रिका रिपोर्टर ने बात की तो उसने जिन्दगी की दर्दभरी किताब मासूमियत से खोलकर रख दी। उसने बताया कि उसके परिवार में माता-पिता हैं जो मजदूरी करते हैं। मां की तबीयत ठीक नहीं रहती। इस कारण वो हमेशा काम पर नहीं जा पाती है। परिवार में 4-5 भाई ***** हैं। वो बड़ा है, इस कारण वो होटल में काम कर 3 हजार रुपए महीना कमाता है। पूरे पैसे घर में भिजवा देता है। चूंकि होटल में उसे दोनों टाइम खाना मिलता है, इसलिए उसका गुजारा चल जाता है। पढ़ाई के बारे में पूछने पर उसने बताया कि वो कक्षा 7 में पढ़ता था।
पढ़ाई चौपट, चाय बनाने में कट रही जिंदगी
चाय की एक थड़ी पर कार्यरत11 वर्ष के बच्चे ने पढ़ाई की बजाय काम करने को लेकर कहा- क्या करें। कमाना मजबूरी है। पिता भी मजदूरी करते हैं, जैस तैसे घर का गुजारा चलता है। खेती न होने के कारण काम करना पड़ता है। काम करता हूं, इसलिए पढ़ाई भी छूट गई। दो-तीन वर्षों से काम कर रहा हूं, चाय बनाता हूं और दुकानों, दफ्तरों पर देता हूं। इस कारण के महीनें में 1500 रुपए मिलते हैं। जो घर पर जाकर दे देता हूं। भाई-बहिन छोटे हैं। इसलिए खुद की पढ़ाई छोड़ दी। यह काम छोडकऱ पढ़ाई करुं तो कैसे घर का गुजारा चले।
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