नाबालिग के पिता की मौत के बाद उसकी मां ने भरण पोषण का जिम्मा उठाया, लेकिन घर और बाहर के कामों में फंस मां ने घर की जिम्मेदारी बेटी पर डाल दी। सिलसिला कुछ दिन तो चला पर घर की जिम्मेदारियों के बोझ में उसका स्कूल जाना भी छूट गया। ब्लॉक स्तरीय बाल संरक्षण इकाई व ग्राम स्तरीय बाल संरक्षण इकाई सभी ने इस बात की खैरखबर तक नहीं ली। और तो और विद्यालय प्रबंधन ने बच्ची की पढ़ाई जारी रखने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया। नाबालिग का 13 साल की आयु में बाल विवाह भी करा दिया गया लेकिन इस मामले में भी महिला एवं बाल विकास विभाग गहरी नींद में सोता रहा है।
अब नाबालिग के भविष्य को लेकर कानूनी पेंच फंस गया है। बाल कल्याण समिति सदस्य मधुसूदन व्यास ने बताया कि बच्ची की रजामंदी के बाद ही उसे बालिका गृह में रखा जा सकता है। वरना उसे परिवार के सुपुर्द किया जाएगा। घर में क्या उसका भविष्य संवर पाएगा इसे लेकर संशय है। हालांकि इस दिशा में बाल संरक्षण इकाई से निगरानी रखवाने के प्रयास किए जाएंगे। साथ ही न्यायालय के माध्यम से नाबालिग का विवाह शून्य कराने का प्रयास किया जाएगा।