मरहूम बेटे के बच्चों और खुद की बेटी का भरण पोषण करने वाली 60 वर्षीय हीरा बताती हैं कि शादी के कुछ वर्षों बाद उनके पति पेमजी का देहांत हो गया था। उन्होंंने जैसे-तैसे कर बच्चों को बड़ा किया। तीन बेटों और एक बेटी का भरण पोषण कर उनकी शादी कराई। सबकुछ ठीक चल रहा था। अचानक एक घटना ने जिन्दगी को संघर्षों की ओर ढकेल दिया। दूसरे बेटे की पत्नी के नोतरे जाने और बेटे की सडक़ दुर्घटना में अचानक मौत के बाद सब कुछ बदल गया। खुद का जीवन तो मुश्किलों से गुजर ही रहा था। और अब बेटे के छह बच्चों के भरण पोषण की जिम्मेदारी आन पड़ी।बेटी के विवाह के बाद उसके दाम्पत्य जीवन में दिक्कतें आईं और पति ने छोड़ दिया तो बेटी और पोते-पोतियों के भरण पोषण की जिम्मेदारी आ गई।
बच्चे दिन में पोषाहार पर निर्भर
हीरा बताती हैं कि आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण बच्चों का पेट एक समय तो स्कूल में मिलने वाले पोषाहार से भर जाता है। शाम को घर में कुछ भी बन जाता है। कभी मजदूरी तो कभी खेती पर परिवार निर्भर है। कहने को तो खेती पांच बीघा है, लेकिन घर में कोई पुरुष न होने के कारण उसमें मुश्किलें आती हैं। गांव और कुटुम्ब के लोग मदद कर देते हैं तो 10-12 क्विंटल गेहूं हो जाते हैं। जिसका कुछ हिस्सा बेच कर घर के अन्य खर्चे चलाते हैं।
हीरा बताती है कि सरकार की योजनाओं का लाभ उसे नहीं मिला। छह बच्चों में किसी को पालनहार योजना का लाभ नहीं मिला। यदि उन्हें ऐसी कोई सहूलियत मिल जाए तो उनका भरण-पोषण करने में काफी राहत मिल जाए।
सेनावासा गांव में भी गलाब पत्नी स्व. चमना उसके बेटे की मौत के बाद उसके बच्चों की देखरेख कर रही हैं। हादसे के बाद बेटे के बच्चों का भरण-पोषण करना और उन्हें शिक्षा के प्रति पे्ररित कर उन्हें खूब पढ़ाना ही मुख्य उद्देश्य है। बच्चों की मां के नोतरे जाने और बेटे की मौत के सदमे को भुलाकर गलाब नई जिन्दगी शुरू कर चुकी है। उनके इस संघर्ष में उनका बेटा परमेश भी सहयोग कर बच्चों की देखरेख कर रहा है।