गत छह वर्षों से महेंद्र खाब्या, राजेश सुराणा, निखिल चंडालिया और चिन्टू सुबह-शाम 10 किलो आटे की रोटियां बनवाते हैं और घोड़ादर्रा वन क्षेत्र में जाकर वानरों को खिलाने जाते हैं। रोज इतनी रोटियां बनाने के लिए बकायदा व्यवस्था कर रखी है। इन चारों लोगों में कोई न कोई सुबह 8 बजे और शाम को 5 बजे बंदरों को रोटियां खिलाने के लिए आवश्यक रूप से जाता है और यह सिलसिला मार्च से लेकर बारिश आने तक चलता है।
महेंद्र खाब्या ने बताया कि दरअसल इस वन क्षेत्र में बंदरों की संख्या काफी ज्यादा है। गर्मी के दिनों में यहां पानी और भोजन का संकट विकराल रूप धारण कर लेता है। कुछ वर्ष पूर्व यहां ग्रामीणों और प्रशासन की मदद से पानी के संकट को दूर करने के लिए कुंड बनवा दिया गया। इससे पानी की व्यवस्था तो हो गई, लेकिन भोजन का संकट खत्म नहीं हुआ। तब बंदरों की भूख मिटाने का यह जतन किया जो आज भी चल रहा है।
क्षेत्र में मोरों को जीवनदान देने के लिए भी ये युवा प्रयत्नशील हैं। बंदरों के लिए लिए रोटियां ले जाने के साथ ही मोरों को दाना खिलाते हैं। इस जतन में इस वर्ष कुछ अन्य लोग भी इस पुनीत कार्य में सहयोग करने के लिए जुड़ गए हैं।
बंदरों का पेट भरने के लिए 12 से 15 हजार का खर्च ये चारों युवा मिलकर उठाते हैं।