ठेकेदार कंपनी का यह तर्क : – ठेकदार कंपनी का तर्क है कि आरएसआरडी से एलिवेशन के टेण्डर में देरी के कारण काम प्रभावित हो रहा है। ढांचे खड़े हो गए हैं और एलिवेशन का निर्णय होते ही शेष काम भी तेज गति से पूरा करेंगे। एलिवेशन के अभाव में खिडक़ी दरवाजे का काम नहीं कर पा रहे, फ्लोरिंग का काम नहीं कर पा रहे। जिन दो भवनों के टेण्डर में एलिवेशन शामिल है तो उसमे अड़चन नहीं है। सिविल वर्क के अलावा बिजली आदि के काम हमारे जिम्मे नहीं है। इसके अलावा हो चुके काम की राशि भी बकाया है। हालांकि मुख्य बाधा एलिवेशन तय होने की है। सिविल वर्क करने में कोई परेशानी नहीं है। चार भवनों कुलपति और परीक्षा नियंत्रण भवन तथा अपार्टमेंट व अकादमिक भवनों के सामने प्रदर्शित बोर्ड के मुताबिक 17 अप्रेल 2018 को इन कार्यों की शुरुआत हुई और इन्हें 8 फरवरी 2019 तक पूर्ण कर लेने की तिथि दर्शायी हुई है, लेकिन अभी काफी लंबा समय लगने के आसार हैं। शेष दो कार्य की अवधि अभी बाकी है। लगातार देरी के बावजूद निर्माण एवं मॉनिटरिंग का जिम्मा जिनके पास है, वे भी लापरवाही बरत रहे है।
इनका कहना है… आरएसआरडीसी अभियंता जे.पी. सैनी का कहना है कि सही है निर्माण में देरी हुई है। चार काम में एलिवेशन के बारे में निर्णय नहीं हो पाया है। विवि की मंजूरी मिलने पर टेण्डर होंगे। अभी पंचायत चुनाव की आचार संहिता के कारण भी टेण्डर प्रक्रिया में बाधा आ सकती है। ठेकेदार का भुगतान मुख्यालय से लिमिट दी जाती है और उसी के अनुसार भुगतान हो पाता है। मुख्यालय से लिमिट नहीं आती है तो भुगतान नहीं कर पाते हैं। इस कारण उसका बकाया है। इधर, जीजीटीयू के कुलपति कैलाश सोडानी ने कहा कि निर्माण कार्य कछुआ चाल चल रहा है। अब तक काफी काम हो जाना चाहिए था। धीमी गति को लेकर राज्यपाल का भी ध्यान आकृष्ट किया है। अभी कई काम बाकी है जबकि भवन फरवरी 2019 में हो ही बन जाने चाहिए थे।