scriptजन्माष्टमी विशेष : यहां बांसवाड़ा के तलवाड़ा कस्बे में दसवीं सदी से विराजमान हैं भगवान द्वारिकाधीश | here Lord Dwarkadhish is in Banswara's Talwara town since 10th century | Patrika News

जन्माष्टमी विशेष : यहां बांसवाड़ा के तलवाड़ा कस्बे में दसवीं सदी से विराजमान हैं भगवान द्वारिकाधीश

locationबांसवाड़ाPublished: Aug 23, 2019 10:59:17 pm

Submitted by:

deendayal sharma

वागड़ में भगवान विष्णु के विविध स्वरूपों के कई मंदिर हैं, लेकिन जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर तलवाड़ा स्थित संवत 1025 में निर्मित द्वारिकाधीश मंदिर पुरावैभव का दिग्दर्शन कराता है। यह ऐतिहासिक मंदिर अद्भुत वास्तुकला और मूर्तिकला के कारण आकर्षण का केंद्र है।

जन्माष्टमी आज : यहां बांसवाड़ा के तलवाड़ा कस्बे में दसवीं सदी से विराजमान हैं भगवान द्वारिकाधीश

जन्माष्टमी आज : यहां बांसवाड़ा के तलवाड़ा कस्बे में दसवीं सदी से विराजमान हैं भगवान द्वारिकाधीश

बांसवाड़ा /तलवाड़ा. वागड़ में भगवान विष्णु के विविध स्वरूपों के कई मंदिर हैं, लेकिन जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर तलवाड़ा स्थित संवत 1025 में निर्मित द्वारिकाधीश मंदिर पुरावैभव का दिग्दर्शन कराता है। यह ऐतिहासिक मंदिर अद्भुत वास्तुकला और मूर्तिकला के कारण आकर्षण का केंद्र है।
द्वारिकाधीश ट्रस्ट मंडल के अध्यक्ष लक्ष्मीनारायण शुक्ला और साथी बुजुर्ग बताते हैं कि पंचायतन परंपरा के इस मंदिर को पूर्व में गदाधर के नाम से जाना जाता था। मंदिर का सभा मंडप है 16 खंभों पर निर्मित है। इसके मध्य में अष्टधातु की बनी गरूड़ की प्रतिमा है। मंदिर में बने गुंबज का मनमोहक कमल और नर्तकियों की प्रतिमाएं श्रद्धालुओं को भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला का अहसास कराती हैं। गर्भगृह में काले पत्थर की चतुर्भुज विष्णु की प्रतिमा है। पाŸव में महालक्ष्मी की प्रतिमा है। मंदिर के बाहरी भाग में पीछे की तरफ चतुर्भुज विष्णु की भूरे रंग की प्रतिमा खंडित अवस्था में है। इसके सिर पर मुकुट, नीचे का दायां हाथ वरद मुद्रा में अक्षमाला, ऊपर के हाथ में त्रिशूल है, जबकि बाएं दोनों हाथ खण्डित हैं। दाएं व बाएं पैरों में गण-गणिकाएं विद्यमान हैं। यहां कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष मेले सा माहौल रहता है।
जन सहयोग से स्वर्ण शिखर स्थापित
लंबे समय तक मंदिर वीरान पड़ा रहा। फिर आसपास आबादी होने पर वैष्णव समाज ने इसकी सार-संभाल शुरू की। युवाओं ने पहल क र मंदिर की कलाकृतियों को घिस-घिसकर निखारा और मंदिर को जागृत करने के लिए सुबह-शाम पूजा-अर्चना और आरती प्रारंभ की। बाद में वैष्णव समाज की कमेटी बनी, जिसने जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाया। समाज के लोगों के जन सहयोग से यहां स्वर्ण शिखर स्थापित भी किया।
पुरातत्व विभाग ने ली सुध, फिर छोड़ा अधूरा काम

मंदिर के पुरावैभव देखकर पुरातत्व विभाग ने संरक्षण-संवद्र्धन का काम हाथों में लिया। सन् 2014-2015 में मुख्यमंत्री बजट योजना के तहत मंदिर के लिए 50 लाख रुपए स्वीकृत हुए और जीर्णोद्धार शुरू भी हुआ, लेकिन मंदिर के विकास कार्य पूर्ण नहीं हो पाया। अभी मंदिर परिसर में लाल पत्थर बिखरे पड़े हैं और कोई आगे के काम की सुध नहीं ले रहा। परिसर में निर्मित उद्यान देखरेख के अभाव में बदहाल हो रहा है।
वर्षो की परंपरा का आज होगा निर्वाह

श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर वैष्णव समाज रात 12 बजे शंख ध्वनि और ढोल नगाड़ों के साथ द्वारिकाधीश मंदिर पहुंचकर उत्सव मनाता रहा है। जन्मोत्सव के बाद गाजे-बाजे के साथ वैष्णव समाज के प्रतिनिधि गुलाल उड़ाते हुए सोमपुरा मोहल्ले के महादेव मंदिर पहुंचते हैं। यहां सोमपुरा समाज द्वारा बनाई आकर्षक झांकी के साथ उत्सव होता है। इसके उपरांत लक्ष्मीनानारायण मंदिर पहुंचकर जन्मोत्सव व मटकी फोड़ के कार्यक्रम होते हैं। यह परंपरा शनिवार को भी निभाई जाएगी।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो