वैसे तो अधिकांश घोड़ा पालकों के पास दो-तीन घोडिय़ां या घोड़े हैं। लेकिन कुछ एक घोड़ा पालक ऐसे भी हैं। जिनके पास 4-5 या उससे ज्यादा घोड़े-घोड़ी हैं। इनमें से कुछ के पास अच्छी नस्ल के घोड़े भी हैं। जिनका किराया पालकों के द्वारा अधिक लिया जाता है।
लक्ष्मण ने बताया कि उनके पास दो घोड़े हैं। जिनका महीने का खर्च तकरीबन 6 हजार रुपए महीना है। इस लिहाज से घोड़ों के रखरखाव के लिए 12 हजार रुपए महीना खर्च करने पड़ते हैं। और साल में तकरीबन डेढ़ लाख। जबकि अधिक कमाई न होने के कारण घोड़ों को चने वगैरह नहीं खिला पाते हैं। गेहूं आदि खिलाकर जैसे तैसे काम चला रहे हैं। 15 वर्ष से घोड़े साथ हैं, इसलिए उनका रखरखाव भी परिवार के सदस्यों की तरह ही किया जाता है।
लगभग 15 वर्षों से शादी बारातों में घोड़ी लेकर जाने वाले ठीकरिया निवासी लक्ष्मण का कहना है कि इस व्यवसाय में अब कुछ नहीं रह गया। पहले तो कमाई हो भी जाती थी। लेकिन अब खर्च के आगे कमाई नाममात्र ही रह गई है। चूंकि घोड़ों को पालने का शौक है इसलिए करते आ रहे हैं, इससे लोगों की सेवा भी हो जाती है।
लक्ष्मण से बताया कि वो एक शादी में 3500 रुपए लेते हैं, कोई तीन हजार भी देता है। और पूरे सावे 10 से 12 शादियों में बुकिंग हो जाती है। ऐसे देखा जाए तो एक सावे में एक घोड़े से लगभग 35 हजार रुपए की कमाई हो जाती है। बाकि पूरे वर्ष घोड़ी का कोई कार्य नहीं होता है।