जानकारी के अनुसार बबलू के माता – पिता नहीं थे, इस कारण वह अपने मामा चमना भगत के घर मोर में ही रहता था। जब भी समय मिलता तो वह मवेशी चराने अन्य बच्चों के साथ निकल पड़ता था। इसी तरह से दूसरा मृतक राजू भगतपुरा का रहने वाला था, लेकिन हादसे के एक दिन पहले ही मोर गांव के मावजी के घर मेहमान आया था। बताया जाता है कि इस क्षेत्र में खुलापन होने के कारण आस पास के लोग मवेशी चराते है और जब भी बारिश आती है तो इसी छात्रावास का सहारा लिया जाता है। दूसरी ओर रविवार को हुए हादसे के बाद मौके पर एसडीएम विजयेश पंड्या, डीएसपी संदीपङ्क्षसह, सीआई प्रवीण कुमार आदि ने मौका मुआयना किया।
सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग की ओर से यहां डॉ. भीमराव अंबेडकर का छात्रावास संचालित था। भवन जर्जर होने के कारण तीन साल पहले ही इसे नकारा घोषित कर दिया था। लेकिन बड़ा सवाल यहीं है कि नकारा घोषित होने के बाद तीन साल गुजर गए, लेकिन अब तक विभाग ने इसे गिराया क्यों नहीं और स्थानीय प्रशासन ने इसे गिराने को लेकर पहल क्यों नहीं की। यदि समय रहते ही इस नकारा भवन को गिरा दिया गया होता तो शायद बच्चों की जान नहीं जाती। गौरतलब है कि प्रशासन हर वर्ष बरसात से पूर्व जर्जर भवनों को लेकर महज कागजी आदेश ही जारी कर रहा है। धरातल पर काम नहीं होने से अब कई जर्जर भवन हैं, जो कभी भी गिर सकते हैं।