कावड़ यात्रा के दौरान कावडियों की टोली भगवा रंग की वेशभूषा में नजर आएगी। इसके लिए बाजार में भगवा कुर्तों की दुकानें सजाई जाएगी। वहीं यात्रा में पुरूषों के साथ ही महिला श्रदधाओं की भी खासी संख्या रहती है। वहंी आदिवासी श्रदलु युवतियां एक जैसे लहंगे व ओढऩी में भी इस यात्रा में शामिल होती हैं। उनका मानना है कि एक जैसी ड्रेस से उनकी अलग पहचान रहती है।
कावड़ यात्रा की शुरूआत बांसवाड़ा में 1983 में हुई। हरिप्रसाद अग्रवाल को बांसवाड़ा में कावड़ यात्रा का शुत्रपात करने वाला माना जाता है। अग्रवाल ने बिहार की तर्ज पर बेणेश्वर धाम से मंदारेश्वर तक की कावड़ यात्रा प्रारंभ की थी। जिसमें धीरे धीरे श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती गई और आज हजारों में है।
कभी 11 जनों से प्रारंभ हुई बेणेश्वर धाम से बांसवाड़ा तक कावड़ यात्रा में वर्तमान में करीब 45 हजार भक्तगण शामिल होते हैं। कावड़ यात्रा प्रारंभ से लेकर अगले दिन जलाभिषेक तक बेणेश्वर मार्ग से लेकर बांसवाड़ा तक मार्ग में कावडिय़ों का रैला रहता है। पुलिस व जिला प्रशासन की ओर से भी इस यात्रा के दृष्टिगत व्यापक इंतजाम किए जाते हैं।