बांसवाड़ा के महात्मा गांधी अस्पताल में बने ब्लड बैंक में ब्लड की 80 फीसदी जरूरत शिविरों से उपलब्ध होने वाले रक्त से पूरी होती है, लेकिन मई में एक भी शिविर न लगने के कारण रक्त उपलब्ध नहीं हो सका।
पूरे जिले में सिर्फ एक ही ब्लड बैंक है। इस कारण यहां रोजाना 15 से 20 यूनिट ब्लड की खपत है। इसमें थैलेसीमिया से पीडि़त बच्चों, बंदीगृह के रोगियों, एचआईवी पीडि़तों व अन्य गंभीर बीमारी से पीडि़त रोगियों को बिना रिप्लेसमेंट के ब्लड देने की वरीयता भी है। इसके अलावा 12 वर्ष से छोटी बच्चियों को भी बिना रिप्लेसमेंट के रक्त दिया जाता है।
महात्मा गांधी अस्पताल के ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. प्रवीण गुप्ता का कहना है इस वर्ष जनवरी से अप्रैल तक कुल 903 यूनिट ब्लड सप्लाई किया गया। जिसमें 500 यूनिट बिना रिप्लेसमेंट के दिया गया। अधिक संख्या में बिना रिप्लेंसमेंट के ब्लड उपलब्ध कराने के कारण खून की डिमांड अधिक रहती है। लेकिन भ्रांतियों में फंसे होने के कारण अधिकांश ग्रामीण खून देने से कतराते हैं। जबकि रक्तदान करना महादान है इससे शरीर को कोई नुकसान नहीं होता है। इसलिए सभी स्वस्थ्य लोगों को रक्तदान करना चाहिए ताकि जरूरतमंदों की जान बचाई जा सके।
इस वर्ष जनवरी से लेकर अप्रेल माह तक 470 यूनिट रक्त ब्लड बैंक में आया। इसमें 350 यूनिट ब्लड रक्तदान शिविरों से प्राप्त हुआ। वहीं, 120 यूनिट ब्लड स्वैच्छिक रक्तदाताओं ने दान किया।
रक्तदाता की आयु 18 से 60 वर्ष के बीच हो और वजन 45 किग्रा से अधिक हो।
एक माह में टेटू या शरीर का अंग छेदन नहीं कराया हो।
हीमोग्लोबिन 12.5 ग्राम से ज्यादा हो
रक्तदाता ने तीन माह में कहीं रक्तदान न किया हो।
रक्तदाता किसी गंभीर बीमारी एवं एड्स, क्षय, रति ?, पीलिया, मलेरिया, मधुमेह आदि से ग्रसित न हो।
दो घंटे पहले कुछ खाया जरूर हो।