इसलिए है सबसे लंबा चंद्रग्रहण
वैज्ञानिक आधार पर यह चंद्रग्रहण सदी का सबसे लंबा इसलिए है कि सूर्य, पृथ्वी तथा चंद्रमा के केंद्र एक ही सीधी रेखा में स्थित होंगे और इसकी अवधि अधिक होगी। इससे पहले सदी का सबसे लंबा चंद्रग्रहण जून 2011 में पूर्ण चंद्रग्रहण 100 मिनट तक देखा गया था। उस दौरान साफ आसमान होने की वजह से भारत सहित दुनियाभर के देशों के लोग आकाश की इस अद् भूत खगोलीय घटना के साक्षी बने। 16 जुलाई, 2000 को पूर्ण चंद्रग्रहण 1 घंटा 46 मिनट का था। दक्षिण अमरीका, पूर्वी अफ्रीका, मध्य पूर्व, मध्य एशिया, आस्ट्रेलिया, यूरोप में दिखाई देगा।
वैज्ञानिक आधार पर यह चंद्रग्रहण सदी का सबसे लंबा इसलिए है कि सूर्य, पृथ्वी तथा चंद्रमा के केंद्र एक ही सीधी रेखा में स्थित होंगे और इसकी अवधि अधिक होगी। इससे पहले सदी का सबसे लंबा चंद्रग्रहण जून 2011 में पूर्ण चंद्रग्रहण 100 मिनट तक देखा गया था। उस दौरान साफ आसमान होने की वजह से भारत सहित दुनियाभर के देशों के लोग आकाश की इस अद् भूत खगोलीय घटना के साक्षी बने। 16 जुलाई, 2000 को पूर्ण चंद्रग्रहण 1 घंटा 46 मिनट का था। दक्षिण अमरीका, पूर्वी अफ्रीका, मध्य पूर्व, मध्य एशिया, आस्ट्रेलिया, यूरोप में दिखाई देगा।
103 मिनट होंगे महत्वपूर्ण
जाफरी के मुताबिक इस खगोलीय घटना के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए 103 मिनट महत्वपूर्ण होंगे क्योंकि ये पूर्ण चंद्र ग्रहण की अवधि है। इसमें सिंटीलेशन, गाइगर मूलर संसूचक द्वारा 600 केईवी और 1400 केईवी (किलो इलेक्ट्रॉन वॉल्ट)ऊर्जा के द्वितीयक अंतरिक्ष विकिरणों के प्रेक्षण लिए जाएंगे। इस खगोलीय घटना के द्वारा पिछले चंद्रग्रहण से प्राप्त आंकड़ों का सत्यापन किया जाएगा।
जाफरी के मुताबिक इस खगोलीय घटना के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए 103 मिनट महत्वपूर्ण होंगे क्योंकि ये पूर्ण चंद्र ग्रहण की अवधि है। इसमें सिंटीलेशन, गाइगर मूलर संसूचक द्वारा 600 केईवी और 1400 केईवी (किलो इलेक्ट्रॉन वॉल्ट)ऊर्जा के द्वितीयक अंतरिक्ष विकिरणों के प्रेक्षण लिए जाएंगे। इस खगोलीय घटना के द्वारा पिछले चंद्रग्रहण से प्राप्त आंकड़ों का सत्यापन किया जाएगा।
पृथ्वी के सबसे नजदीक मंगल ग्रह
मंगलग्रह पृथ्वी के सबसे नजदीक 31 जुलाई को आएगा। इस खगोलीय घटना का प्रेक्षण लिया जाएगा। इस दिन मंगलग्रह की पृथ्वी से सबसे निकटतम दूरी पांच करोड़ छियत्तर लाख किलोमीटर 57.6 मिलियन किमी. रहेगी। पहले भी इसी प्रकार के अध्ययन में द्वितीयक अंतरिक्ष किरणों की ऊर्जा में परिवर्तन ज्ञात किया। इसलिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इस खगालीय घटना के प्रेक्षण अत्यन्त उपयोगी है और प्रेक्षणों के परिणार्मों द्वारा किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकेगा । दोनों खगोलीय घटना एक साथ होने से यह प्रेक्षण अत्यन्त उपयोगी हो गए है और आकड़ों का विश्लेषण कर किसी वैज्ञानिक निष्कर्ष पर पहुंचा जाएगा।
मंगलग्रह पृथ्वी के सबसे नजदीक 31 जुलाई को आएगा। इस खगोलीय घटना का प्रेक्षण लिया जाएगा। इस दिन मंगलग्रह की पृथ्वी से सबसे निकटतम दूरी पांच करोड़ छियत्तर लाख किलोमीटर 57.6 मिलियन किमी. रहेगी। पहले भी इसी प्रकार के अध्ययन में द्वितीयक अंतरिक्ष किरणों की ऊर्जा में परिवर्तन ज्ञात किया। इसलिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इस खगालीय घटना के प्रेक्षण अत्यन्त उपयोगी है और प्रेक्षणों के परिणार्मों द्वारा किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकेगा । दोनों खगोलीय घटना एक साथ होने से यह प्रेक्षण अत्यन्त उपयोगी हो गए है और आकड़ों का विश्लेषण कर किसी वैज्ञानिक निष्कर्ष पर पहुंचा जाएगा।
चल रहे हैं अध्ययन
बी.एन. विश्वविद्यालय उदयपुर में इन दो अद्भूत खगोलीय घटना को लेकर प्रेक्षण सिंटीलेशन संसूचक तथा गाईगर मूलर ससूुचक से द्वितीयक अंतरिक्ष किरणों के प्रेक्षणों लेना प्रारम्भ हो गए है। वैज्ञानिक अध्ययन एस.एन.ए. जाफरी की अगुवाई में असिटेंट प्रो. डॉ. देवेन्द्र पारीक तथा विद्यार्थी तेजेन्द्र प्रताप सिंह चौहान, खुशवन्त पालीवाल, कुशाग्र नाग, प्रांजल जोशी, कमलेश औदिच्य, हेमेन्द्र प्रताप सिंह राठौड़ लाल धाकड़ अध्ययन कर रहे है।इसी क्रम में 23जुलाई को प्रेक्षण के दौरान विज्ञान अधिष्ठता प्रोफेसर रेणु राठौड़ तथा सहायक अधिष्ठता प्रोफेसर रीतु तोमर भी उपस्थित थे।
बी.एन. विश्वविद्यालय उदयपुर में इन दो अद्भूत खगोलीय घटना को लेकर प्रेक्षण सिंटीलेशन संसूचक तथा गाईगर मूलर ससूुचक से द्वितीयक अंतरिक्ष किरणों के प्रेक्षणों लेना प्रारम्भ हो गए है। वैज्ञानिक अध्ययन एस.एन.ए. जाफरी की अगुवाई में असिटेंट प्रो. डॉ. देवेन्द्र पारीक तथा विद्यार्थी तेजेन्द्र प्रताप सिंह चौहान, खुशवन्त पालीवाल, कुशाग्र नाग, प्रांजल जोशी, कमलेश औदिच्य, हेमेन्द्र प्रताप सिंह राठौड़ लाल धाकड़ अध्ययन कर रहे है।इसी क्रम में 23जुलाई को प्रेक्षण के दौरान विज्ञान अधिष्ठता प्रोफेसर रेणु राठौड़ तथा सहायक अधिष्ठता प्रोफेसर रीतु तोमर भी उपस्थित थे।
बांसवाड़ा में रात 10.44 बजे शुरुआत
उदयपुर की बीएन यूनिवर्सिटी के भौतिक शास्त्र विभाग के प्रोफेसर एसएनए जाफरी के अनुसार चन्द्रग्रहण का वैज्ञानिक अध्ययन अन्य स्थानों के साथ उदयपुर की बीएन यूनिवर्सिटी में भी किया जाएगा। बांसवाड़ा में यह खगोलीय घटना रात्रि 10 बजकर 44 मिनट से प्रारम्भ होकर 4 बजकर 58 मिनट पर समाप्त होगी और इसका अधिकतम काल 1 बजकर 51 मिनट पर रहेगा। पूर्व में भी इस प्रकार की खगोलीय घटना के दौरान द्वितीयक अंतरिक्ष किरणों की ऊर्जा में परिवर्तन देखे गए हंै जो कि 1400 केवी. से 1600 केवी. के बीच है। जिसका सत्यापन इन खगोलीय घटना के दौरान किया जाएगा साथ ही पृथ्वी पर उपस्थित वायुमण्डल में प्रदूषण को देखा जाएगा।
उदयपुर की बीएन यूनिवर्सिटी के भौतिक शास्त्र विभाग के प्रोफेसर एसएनए जाफरी के अनुसार चन्द्रग्रहण का वैज्ञानिक अध्ययन अन्य स्थानों के साथ उदयपुर की बीएन यूनिवर्सिटी में भी किया जाएगा। बांसवाड़ा में यह खगोलीय घटना रात्रि 10 बजकर 44 मिनट से प्रारम्भ होकर 4 बजकर 58 मिनट पर समाप्त होगी और इसका अधिकतम काल 1 बजकर 51 मिनट पर रहेगा। पूर्व में भी इस प्रकार की खगोलीय घटना के दौरान द्वितीयक अंतरिक्ष किरणों की ऊर्जा में परिवर्तन देखे गए हंै जो कि 1400 केवी. से 1600 केवी. के बीच है। जिसका सत्यापन इन खगोलीय घटना के दौरान किया जाएगा साथ ही पृथ्वी पर उपस्थित वायुमण्डल में प्रदूषण को देखा जाएगा।