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अब वागड़ के सांप भी बचाएंगे लोगों का जीवन, क्षेत्र के वाइपर प्रजाति के ‘विष’ से बनेगी दवाएं

locationबांसवाड़ाPublished: Sep 03, 2018 12:58:23 pm

Submitted by:

Ashish vajpayee

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अब वागड़ के सांप भी बचाएंगे लोगों का जीवन, क्षेत्र के वाइपर प्रजाति के ‘विष’ से बनेगी दवाएं

बांसवाड़ा. सर्पों की अधिकता वाले क्षेत्रों में शामिल बांसवाड़ा-डूंगरपुर में पाए जाने वाले विषैले सर्पों के विष से अब दवाओं का निर्माण किया जाएगा। विशेष रूप से क्षेत्र में पाए जाने वाले वाइपर प्रजाति के सांपों के विष पर शोध किया जाएगा और एंटी वेनम (विष का असर कम करने में सक्षम) दवा तैयार की जाएगी। इसके लिए राज्य सरकार ने हैदराबाद की एक संस्था को अनुमति दी है। जानकारी के अनुसार राज्य सरकार ने हैदराबाद के सेन्टर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) को सांपों का विष निकालने की एक साल के लिए अनुमति दी है। केन्द्र की टीम सांपों के विष को निकालकर एकत्र करेगी। विशेष रूप से वाइपर प्रजातियों के सांपों के विष का शोध किया जाएगा और उससे एंटी वेनम दवा तैयार की जाएगी। शोध और दवाओं के निर्माण का यह कार्य सितंबर से अगले वर्ष अगस्त तक किया जाएगा।
चार प्रजातियां जहरीली
सेवानिवृत्त क्षेत्रीय वन अधिकारी सज्जनसिंह राठौड़ बताते हैं कि वागड़ अंचल में सर्पों की कई प्रजातियां हैं, लेकिन इसमें चार प्रजातियां विषैली हैं जो कोबरा, करैत, सास्केल्ड वाइपर और रसल वाइपर हैं। यह जुलाई से सितंबर माह की अवधि में अपने बिल से बाहर आते हैं। ठंड की शुरुआत होते ही यह कम दिखाई देते हैं। वागड़ के बांसवाड़ा व डूंगरपुर में यह विशेष रूप से पानी और नमी तथा 20 से 30 डिग्री तापमान वाले इलाकों में अधिक दिखाई देते हैं।
इन जिलों का चयन
अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जीवी रेड्डी ने बांसवाड़ा, डूंगरपुर, बीकानेर, जोधपुर, जैसलमेर, राजसमंद, सिरोही के माउण्ट आबू के उप वन संरक्षकों को पत्र लिखकर इसका कार्यक्रम भेजा है। आदेशानुसार डूंगरपुर एवं बांसवाड़ा में उप वन संरक्षक की निगरानी में एक से 30 सितंबर तक, राजसमंद एवं माउण्ट आबू में एक से 30 नवंबर व अगले साल एक मार्च से 31 मई तक, जोधपुर एवं जैसलमेर में अगले साल एक जून से 31 जुलाई तक, बीकानेर में एक से 31 अगस्त, 2019 तक सांपों का विष निकालकर एकत्र किया जाएगा।
इनका कहना है
सीसीएमबी को दी गई अनुमति की जानकारी है। हालांकि केंद्र के अधिकारियों ने अभी संपर्क नहीं किया है। शोध को लेकर उन्हें आवश्यक सहयोग किया जाएगा।
एसआर जाट, उप वन संरक्षक, बांसवाड़ा।

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