जहां उत्तर प्रदेश-बिहार के लोग गुजरात से पलायन कर रहे हैं, वहां रोजगार की तलाश में राजस्थान के सैंकड़ों लोग अहमदाबाद-मेहसाणा सहित कई क्षेत्रों की ओर कूच करते नजर आते है। कुशलगढ़ विधानसभा क्षेत्र के कसारवाड़ी निवासी सुरेश अपनी पत्नी व छोटे भाई के साथ मेहसाणा जाने के लिए झालोद बस स्टैण्ड पर तैयार दिखे। मेहसाणा में सुरेश का भाई मजदूरी करता हैं। गुजरात में तनाव की बात छेड़ी तो जवाब मिला, राजस्थान वालों के लिए वहां डरने की बात नही है। बस स्टैण्ड पर ही बांसवाड़ा के सल्लोपाट के दिनेश से मुलाकात हुई। बीजापुर में मूंगफली काटने जा रहा था। बोला कोई डर नही हैं, गुजरात तो घर जैसा है। नालपाड़ा (कुशलगढ़) निवासी कमलेश निर्माण कार्य में मजदूरी करने अहमदाबाद जा रहा था। हाथ में बैग उठाए बस के इंतजार में खड़े कमलेश को मासूम से बलात्कार की घटना के बारे में जानकारी भी थी और यूपी-बिहार के लोगों पर हमला होने की बात भी। बोला- अहमदाबाद, सांबरकाठा और एकाध जगह छोडकऱ गुजरात का शेष हिस्सा शांत है।झालोद से करीब दस किलोमीटर दूर दाहोद जिले के बड़े कस्बे लीमड़ी पहुंचे तो वहां भी सब कुछ रोजमर्रा की जिन्दगी की तरह नजर आया।
डॉ. केवल बेरी से मुलाकात हुई तो कहने लगे गुजरात में राजस्थान के लोगों के लिए कोई खतरा नही है, लेकिन बेरी ने जरूर स्वीकारा कि पिछले एक साल में गुजरात कुछ अशांत सा नजर आने लगा है। जातीय आंदोलनों की राजनीति इसे गलत दिशा में ले जा रही हैं। राजस्थान से लगती गुजरात की सीमा में घंटों घूमने के बाद भी किसी तनाव का अहसास नही हुआ। दुकानों पर भी वैसी ही भीड़ जैसी रोज हुआ करती है। राजस्थानी लोग भी वैसे ही व्यवसाय मजदूरी कर रहे है, जैसे अब तक करते आए हैं। कुछ बदला है तो वो है आने वाले कल की चिंता। डॉ. बेरी की बातों का गहराई से विश्लेषण किया जाए तो निष्कर्ष यही निकलता है कि सबसे शांत रहने वाला गुजरात भी अब दूसरे राज्यों की राह पकड़ता नजर आने लगा हैं, लेकिन टटोले गए दिलों से यही ध्वनि सुनाई देती है कि राजस्थान और गुजरात भले ही दो अलग-अलग राज्य हो, लेकिन इनके बीच का रिश्ता एक परिवार का है।
राजस्थान से यहां के लोग गुजरात में
प्रमुख रूप से बांसवाड़ा, डूंगरपुर, जालोर, सिरोही, उदयपुर, पाली के। अधिकांश लोग मेहनत-मजदूरी के लिए जाते है, कुछ व्यापार में भी लगे हुए। इलाज के लिए भी वागड़ व मारवाड़ के कई लोग रोजाना आना-जाना करते है। गुजरात के सीमावर्ती गांवों का अधिकांश रोजमर्रा का काम गुजरात के बड़े कस्बे व शहरों पर निर्भर है।
प्रमुख रूप से बांसवाड़ा, डूंगरपुर, जालोर, सिरोही, उदयपुर, पाली के। अधिकांश लोग मेहनत-मजदूरी के लिए जाते है, कुछ व्यापार में भी लगे हुए। इलाज के लिए भी वागड़ व मारवाड़ के कई लोग रोजाना आना-जाना करते है। गुजरात के सीमावर्ती गांवों का अधिकांश रोजमर्रा का काम गुजरात के बड़े कस्बे व शहरों पर निर्भर है।
ये बोल भी करते है रिश्ते बयां
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2013 में बांसवाड़ा जिले के कुशलबाग मैदान में आयोजित सभा के दौरान भाषण में भी कहा था कि वागड़ के लोगों से गुजरात सुरक्षित है। यहां के लोगों के मेहनत के पसीने से गुजरात चमक रहा है। ये बोल भी कही न कही राजस्थान व गुजरात के मध्य रिश्ते की प्रगाढ़ता को गहरा करते नजर आ रहे है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2013 में बांसवाड़ा जिले के कुशलबाग मैदान में आयोजित सभा के दौरान भाषण में भी कहा था कि वागड़ के लोगों से गुजरात सुरक्षित है। यहां के लोगों के मेहनत के पसीने से गुजरात चमक रहा है। ये बोल भी कही न कही राजस्थान व गुजरात के मध्य रिश्ते की प्रगाढ़ता को गहरा करते नजर आ रहे है।