हर रोज शहर में चार से पांच हजार कैन और कैम्पर बेचे जा रहे हैं। बगैर लाइसेंस का यह कारोबार धड़ल्ले से शहर में चल रहा है। चिकित्सा विभाग जहां इनके लिए लाइसेंस न होने की बात कह रहा है, वहीं जलदाय विभाग उसकी इसमें कोई भूमिका होने से इनकार कर रहा है। शहर में संचालित इन आरओ प्लांट की सच्चाई जानने के लिए गुरुवार को पत्रिका टीम से पड़ताल की तो गंभीर समस्याएं सामने आईं। पेश है रिपोर्ट –
रोजाना लोगों को हजारों लीटर पानी बेचने वाले आरओ प्लांट के संचालनकर्ताओं में अधिकांश को यह भी नहीं पता कि पानी की शुद्धता के मानक क्या हैं? पानी की टीडीएस कितना होना चाहिए? इतना हीं नहीं, पानी की जांच कौन करता है?
शहर में संचालित आरओ प्लांट में एक-दो को छोडकऱ सभी प्लांट में दोयम दर्जे के उपकरणों का उपयोग पानी को शुद्ध करने के लिए किया जा रहा है। प्लास्टिक की कैन में बिकने वाले पानी को मिनरल वाटर का नाम दिया जाता है। जबकि पीने वाले को यह पता ही नहीं होता कि असल में यह पूर्णरूप से शुद्ध किया भी गया है कि नहीं। पानी ठंडा होने के कारण पीने वाले को इसका स्वाद भी पता नहीं चल पाता है। शहर के अधिकांश पानी सप्लायरर्स के द्वारा आधुनिक मशीनों के उपयोग सहित शुद्धता की गारंटी तक दी जा रही है। लेकिन बिना लाइसेंस के संचालित पानी के इस कारोबार को लेकर संशय तो उठ ही रहा है।
लाइसेंस सिर्फ पैक्ड ड्रिंकिंग वाटर का बनता है, खुले पानी की बिक्री के लाइसेंस बनाने का कोई प्रावधान नहीं है। चूंकि ये खाद्य पदार्थ की श्रेणी में नहीं आते इसलिए इनकी सैंपलिंग कर जांच भी नहीं हो पाती है। हां यह जरूर है कि हाइजीन को लेकर जांच की जा सकती है।
अशोक कुमार गुप्ता, कार्यवाहक फूड इंस्पेक्टर, बांसवाड़ा