वागड़ के दोनों ही जिले में ग्रामीण क्षेत्रों का रूख करते ही पानी के छोटे-छोटे पोखरों, तालाबों, नदी-नालों में जगह-जगह 5 से 15 वर्ष तक के बच्चे पानी में हैरतअंगेज कारनामे करते दिख जाते हैं। इनमें एक तैराक पर दूसरा तैराक कंधे पर चढकऱ उल्टे मुंह छलांग लगाना, तो पांव ऊपर कर जमीन के बल तैरना आम बात है। डूंगरपुर के चीखली क्षेत्र के मेडिटेम्बा शक्तिपीठ जागेेश्वरी माताजी मंदिर के निकट कडाणा बेकवाटर की अथाह जल राशि, तो बांसवाड़ा में माही सहित गांव-गांव तालाबों, नदी-नालों एवं जगपुरा पंचायत के मण्डेला गांव सहित कमोबेश हर गांव में साल अधिकांश माह यह बच्चे छाती व पीठ के बल जलक्रीड़ा में मग्न सहज दिख जाते हैं। ये बच्चे जल की गहराई पल में नाप लेते हैं।
तैराकी खेल सबसे अधिक स्वास्थ्य के लिहाज से लाभप्रद तो है ही, पर यह खेल उतना ही अधिक जानलेवा भी है। प्राय: देखने में आ रहा है कि यहां के बच्चे बिना किसी प्रशिक्षक के ही गहरे पानी में साथियों को हाथ-पांव चलाते देख ही तैरना सीख जाते हैं। इसमें जान का खतरा बहुत अधिक है। हर साल कहीं न कहीं से पानी में डूबने से बच्चों की मौत की खबर आ जाती है। अभिभावकों को चाहिए कि वह अपने बच्चों पर विशेष निगरानी रखें।
चीखली. डूंगरपुर जिले के गांवों में भी नौनिहालों के हुनर को कोई सानी नहीं है। जिले के कडाणा बैकवाटर इलाके में आसपास गांवों के बच्चे यहां दिन भर जलक्रीड़ाएं करते हैं और गहरे पानी में बेधडक़ गोता लगाते हैं।
भारतीय तैराकी में नागपुर की कंचनमाला पाण्डे जिसे भारत के बाहर पैसे उधार लेकर स्वीमिंग करनी पड़ी और भारत की पैरालंपिक कमेटी ने मदद भी नहीं की। बाद में कंचनमाला ने विश्व पैरातैराकी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीत कर प्रतिभा का लोहा मनवाया। वह ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला तैराक बनी। वहीं, दुनिया के नम्बर वन तैराक और ओलम्पिक के इतिहास में व्यक्तिगत स्पद्र्धाओं में सर्वाधिक मेडल जीतने वाले खिलाड़ी है अमेरिका के माइकल फेल्प्स। रियो ओलम्पिक में उन्होंने तैराकी में ही 23 पदक अपने नाम किए। उनके नाम तैराकी के सात विश्व कीर्तिमान है।
वागड़ के दोनों ही जिलों में फिलहाल तैराकी प्रशिक्षण की स्थिति दयनीय है। हालात यह है कि दोनों ही जिलों में खेल विभाग के पास प्रशिक्षक तक नहीं है। तरणतालों का अभाव भी खासा है। यहां सरकार, खेल विभाग, अभिभावक और स्वयं युवा तीरंदाजी और क्रिकेट मेें ही अपना कॅरियर तलाश रहे हैं, लेकिन इनके साथ ही यदि सरकार जनजाति क्षेत्र में तैराकी खेल को भी प्रोत्साहन देते हुए इन बच्चों की प्रतिभाओं को तराशे, तो वागड़ से विश्व स्तर की प्रतिभाएं निकल सकती हैं।
तीरंदाजी के साथ ही तैराकी यहां का विशेष खेल बन सकता है। इस दिशा में अब तक कोई विशेष प्रयास नहीं हुए हैं। हमारे स्तर पर खेल स्टेडियम के समीप ही प्रशिक्षण व्यवस्था सहित अन्य इंतजामातों को लेकर सक्षम स्तर पर विशेष परियोजना बनाकर भेजी जाएगी।
धनेश्वर मईड़ा, जिला खेल अधिकारी बांसवाड़ा