यह थी महत्ता
घर में 16 उपयोगी स्थान बनाने का आरंभ ‘पाणेरा’ अर्थात जल स्थान से ही होता है। वास्तु की दृष्टि से इसे वरूण स्थान कहा जाता है, जो समस्त निर्माण को संतुलित रखता है। पहले दीवार के साथ ही पत्थर से निर्मित विशाल ‘पाणेरा’ को चुना जाता था और निर्माण पूर्ण होने के बाद इसी स्थान पर मिट्टी के कलश, चरू रखे जाते थे। ‘पाणेरा’ के साथ ही छोटे-बड़े आले भी बनाए जाते थे, जिनमें गंगाजली, गिलास आदि रखे जाते थे। ‘पाणेरा’ में गिरने वाले पानी की निकासी के लिए भी व्यवस्था होती थी।
घर में 16 उपयोगी स्थान बनाने का आरंभ ‘पाणेरा’ अर्थात जल स्थान से ही होता है। वास्तु की दृष्टि से इसे वरूण स्थान कहा जाता है, जो समस्त निर्माण को संतुलित रखता है। पहले दीवार के साथ ही पत्थर से निर्मित विशाल ‘पाणेरा’ को चुना जाता था और निर्माण पूर्ण होने के बाद इसी स्थान पर मिट्टी के कलश, चरू रखे जाते थे। ‘पाणेरा’ के साथ ही छोटे-बड़े आले भी बनाए जाते थे, जिनमें गंगाजली, गिलास आदि रखे जाते थे। ‘पाणेरा’ में गिरने वाले पानी की निकासी के लिए भी व्यवस्था होती थी।
कई परम्पराएं जुड़ीं
‘पाणेरा’ से जुड़ी हुई कई परम्पराएं वागड़ अंचल में रही है। दीपावली पर इसकी मुंडेर पर दीपक रखना प्रमुख हैं। ‘पाणेरा’ पर अध्ययन करने वाले डा. श्रीकृष्ण जुगनू बताते हैं कि ऐसे कई परिवार हैं, जो ‘पाणेरा’ को सामूहिक आयोजन में पूजना नहीं भूलते हैं। ‘पाणेरा’ पर कोई कभी पांव नहीं रखता है। सिंदूरी त्रिशूल इसे शक्ति स्थल सिद्ध करता है। इसी पर पितृ स्थान, इसके ईशान कोण में देव कोना व आग्नेय कोण में दीप स्थान रखा जाता है।
‘पाणेरा’ से जुड़ी हुई कई परम्पराएं वागड़ अंचल में रही है। दीपावली पर इसकी मुंडेर पर दीपक रखना प्रमुख हैं। ‘पाणेरा’ पर अध्ययन करने वाले डा. श्रीकृष्ण जुगनू बताते हैं कि ऐसे कई परिवार हैं, जो ‘पाणेरा’ को सामूहिक आयोजन में पूजना नहीं भूलते हैं। ‘पाणेरा’ पर कोई कभी पांव नहीं रखता है। सिंदूरी त्रिशूल इसे शक्ति स्थल सिद्ध करता है। इसी पर पितृ स्थान, इसके ईशान कोण में देव कोना व आग्नेय कोण में दीप स्थान रखा जाता है।
नारद संहिता में भी उल्लेख
इस तरह घर में पंडेरी से अनेक स्थलों का निर्धारण माना जाता रहा है। यह भी रोचक है कि मर्तबान के धोने व पानी के टपकने पर जो कुंडी रखी जाती, उसी से नाबदान या प्रणाल को निश्चित किया जाता था। इसका विवरण नारद संहिता, वसिष्ठ संहिता में भी है, जिसमें ऊंचाई व निम्नता को देशानुसार निर्धाण किया गया है। यह विधान शुक्रजन्य मधुमेहादि व्याधि से बचाता रहा है।
इस तरह घर में पंडेरी से अनेक स्थलों का निर्धारण माना जाता रहा है। यह भी रोचक है कि मर्तबान के धोने व पानी के टपकने पर जो कुंडी रखी जाती, उसी से नाबदान या प्रणाल को निश्चित किया जाता था। इसका विवरण नारद संहिता, वसिष्ठ संहिता में भी है, जिसमें ऊंचाई व निम्नता को देशानुसार निर्धाण किया गया है। यह विधान शुक्रजन्य मधुमेहादि व्याधि से बचाता रहा है।