बांसवाड़ा जिले में दो महिला विधायकों में एक यशोदा देवी बांसवाड़ा विधानसभा सीट से चुनी गई और कांता भील गढ़ी विधानसभा से निर्वाचित हुई। यशोदा देवी 1953 के उपचुनाव में विजयी हुई थी। 1951 के चुनाव में सपा से जीते बेल जी भाई को अयोग्य घोषित करने पर यह उप चुनाव हुआ था। इसके पचपन साल बाद यानी 2008 में कांता भील नई गठित विधानसभा सीट गढ़ी से विधायक बनी। इससे अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि बांसवाड़ा जिले मेंं महिलाओं को कितनी तरजीह मिलती रही है। पंचायत राज संस्थाओं और नगर पालिकाओं में आरक्षण ने महिलाओं की संख्या काफी बढ़ा दी है और उनका वर्चस्व दिखने लगा है, लेकिन विधानसभा चुनाव अभी इससे अछूते हैं। क्योंकि राजनीतिक दलों के लिए मजबूरी या अनिवार्यता नहीं है। ऐसे में वे महिलाओं को उनका हक देने से बचते रहे हैं। यह जरूर है कि प्रदेश की दृष्टि से पिछले तीन विधानसभा चुनाव दर चुनाव महिलाओं की भागीदारी अपेक्षाकृत बढ़ी है। महिला प्रत्याशियों के साथ महिला विधायकों की संख्या में कुछ इजाफा हुआ लेकिन अभी भी आधी दुनिया अपने हक से काफी दूर है।
राजस्थान में आजादी के बाद गठित पहली विधानसभा का कार्यकाल 1951 से 1957 तक रहा।् 1951 में पहली बार हुए चुनाव मेंं केवल चार महिलाओं ने चुनाव लड़ा। इनमें फागी विधानसभा सीट से के. एल. पी.् पार्टी की चिरंजी देवी, जयपुर शहर विधानसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी की वीरेन्द्रा बाई, उदयपुर शहर निर्वाचन क्षेत्र से शांता देवी निर्दलीय तथा सोजत मैन विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से जनसंघ की रानीदेवी ने चुनाव लड़ा। यह दुर्भाग्य ही रहा कि ये चारों महिलाएं चुनाव हार गई।