वागड़ के डूंगरपुर एवं बांसवाड़ा दोनों ही जिलों में तीरंदाजी के साथ ही तैराकी की कई प्रतिभाएं हैं, पर, दोनों ही जिलों में खेल विभाग ने एक भी प्रशिक्षक नहीं लगाया है और न ही अच्छे तरणताल बने हुए हैं। यदि एक अदद स्तरीय तरणताल और प्रशिक्षक ही उपलब्ध हो जाए तो प्रतिभाओं को अवसर मिलेंगे।
बांसवाड़ा. वागड़ में कई कुशल तैराक भी हैं। जो अपने स्तर पर बच्चों को प्रशिक्षण देकर दक्ष कर रहे है। कुछ निजी विद्यालय इन दक्ष प्रशिक्षकों का उपयोग भी कर रहे है। ग्रीष्मावकाश के दौरान कुछ निजी विद्यालय स्वीमिंग का विशेष प्रशिक्षण बच्चों के लिए रखकर इस दिशा में कुछ प्रयास करते है, लेकिन सरकार एवं विभाग स्तर से इन्हें प्रोत्साहित करने की दिशा में किसी प्रकार की सार्थक पहल नही की जा रही हैं। प्रशिक्षकों का कहना है कि सरकार को जल्द ही इस ओर नजरें इनायत करनी चाहिए, ताकि तैराकी को यहां विशेष प्रोत्साहन मिले, ताकि यह महज मनोरंजन तक ही सिमट कर न रह जाए।
तैराकी सेहत के लिए भी वरदान है। पिछले कुछ समय से तैराकी से युवा दूर होते जा रहे थे। वहीं अब झील की सफाई और कुछ युवाओं की पहल पर गेपसागर में तैराकी जीवन्त होने लगी है। आधे घंटे की तैराकी पूरे शरीर को सेहतमंद बना सकती है। वहीं स्फूर्ति का स्व जागरण होता है।
डूंगरपुर की गेपसागर झील में इन दिनों सुबह-सुबह बड़ी संख्या में तीन से 15 वर्ष के तक के बच्चे तैराकी के गुर सीख रहे हैं। यहां तरणताल एवं प्रशिक्षक के अभाव में युवा भूपेश शर्मा, निलेश सोनी, विनोद सुथार, आशु सुथार आदि रोज सुबह साढ़े छह बजे से आठ बजे तक बच्चों को तैरना सीखा रहे हैं। इसके लिए टायर-टयूब, लाइफ जैकेट आदि की भी व्यवस्था की गई हैं। ऐसे में कई छोटे-छोटे ठीक से चल भी नहीं पाने वाले बच्चे इन दिनों गेपसागर की अथाह जल राशि में सुबह-सुबह जलक्रीड़ा करते दिख रहे हैं। कई बच्चे तैरना सीख भी गए हैं तथा वह मध्य में लगी शिव प्रतिमा तक जाने लगे हैं। यदि खेल विभाग, प्रशासनिक अमला या स्वयं सेवी संगठन यहां कुछ सुविधाएं प्रदान कर दें, तो छुट्टियों के इन दिनों में कई नौनिहाल तैराक बन सकते हैं।
निलेश सोनी
भूपेश शर्मा