script

Video : जान जोखिम में डालकर दिखा रहे तैराकी का जज्बा, सरकार नजरें इनायत करें तो निखरे वागड़ की प्रतिभा

locationबांसवाड़ाPublished: Jun 13, 2018 01:43:53 pm

Submitted by:

Ashish vajpayee

तैराकों को तराशें तो मिले वागड़ को नई पहचान

banswara

Video : जान जोखिम में डालकर दिखा रहे तैराकी का जज्बा, सरकार नजरें इनायत करें तो निखरे वागड़ की प्रतिभा

बांसवाड़ा/डूंगरपुर. नैसर्गिक प्रतिभा के धनी वागड़ के दोनों ही जिलों में खेल विभाग एवं सरकार के उपेक्षित रवैये के चलते अच्छे तैराक निकल नहीं पा रहे हैं और खेल प्रतिभाएं खिलने से पहले ही कुम्हला रही हैं। यहां के हर गांव-ढाणी में नन्हें-मुन्ने बच्चे स्वयं के बूते ही बिना किसी प्रशिक्षक जान-जोखिम में डाल तैराकी के गुर सीख रहे हैं। यह बात खेल विभाग एवं स्थानीय जनप्रतिनिधि भी जानते हैं पर, यहां की प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के लिए कोई कारगर प्रयास ही नहीं किए गए हैं। जबकि, सरकार और खेल मुख्यालय दोनों ही देहात स्तर के परम्परागत खेलों को बढ़ावा देने के लिए हर वर्ष करोड़ों रुपए फूंक रहे हैं। यदि वागड़ के विधायक एवं सांसद इस तैराकी को प्रोत्साहित करने की दिशा में ठोस कदम उठाएं, तो यहां की प्रतिभाएं वागड़ को अंतरराष्ट्रीय पटल तक उभार सकती हैं।
तरणताल, न प्रशिक्षक
वागड़ के डूंगरपुर एवं बांसवाड़ा दोनों ही जिलों में तीरंदाजी के साथ ही तैराकी की कई प्रतिभाएं हैं, पर, दोनों ही जिलों में खेल विभाग ने एक भी प्रशिक्षक नहीं लगाया है और न ही अच्छे तरणताल बने हुए हैं। यदि एक अदद स्तरीय तरणताल और प्रशिक्षक ही उपलब्ध हो जाए तो प्रतिभाओं को अवसर मिलेंगे।
निजी विद्यालयों में प्रशिक्षण
बांसवाड़ा. वागड़ में कई कुशल तैराक भी हैं। जो अपने स्तर पर बच्चों को प्रशिक्षण देकर दक्ष कर रहे है। कुछ निजी विद्यालय इन दक्ष प्रशिक्षकों का उपयोग भी कर रहे है। ग्रीष्मावकाश के दौरान कुछ निजी विद्यालय स्वीमिंग का विशेष प्रशिक्षण बच्चों के लिए रखकर इस दिशा में कुछ प्रयास करते है, लेकिन सरकार एवं विभाग स्तर से इन्हें प्रोत्साहित करने की दिशा में किसी प्रकार की सार्थक पहल नही की जा रही हैं। प्रशिक्षकों का कहना है कि सरकार को जल्द ही इस ओर नजरें इनायत करनी चाहिए, ताकि तैराकी को यहां विशेष प्रोत्साहन मिले, ताकि यह महज मनोरंजन तक ही सिमट कर न रह जाए।
सेहत के लिए वरदान है तैराकी
तैराकी सेहत के लिए भी वरदान है। पिछले कुछ समय से तैराकी से युवा दूर होते जा रहे थे। वहीं अब झील की सफाई और कुछ युवाओं की पहल पर गेपसागर में तैराकी जीवन्त होने लगी है। आधे घंटे की तैराकी पूरे शरीर को सेहतमंद बना सकती है। वहीं स्फूर्ति का स्व जागरण होता है।
युवाओं की अनूठी पहल, छोटे बच्चे सीख रहे तैराकी के गुर
डूंगरपुर की गेपसागर झील में इन दिनों सुबह-सुबह बड़ी संख्या में तीन से 15 वर्ष के तक के बच्चे तैराकी के गुर सीख रहे हैं। यहां तरणताल एवं प्रशिक्षक के अभाव में युवा भूपेश शर्मा, निलेश सोनी, विनोद सुथार, आशु सुथार आदि रोज सुबह साढ़े छह बजे से आठ बजे तक बच्चों को तैरना सीखा रहे हैं। इसके लिए टायर-टयूब, लाइफ जैकेट आदि की भी व्यवस्था की गई हैं। ऐसे में कई छोटे-छोटे ठीक से चल भी नहीं पाने वाले बच्चे इन दिनों गेपसागर की अथाह जल राशि में सुबह-सुबह जलक्रीड़ा करते दिख रहे हैं। कई बच्चे तैरना सीख भी गए हैं तथा वह मध्य में लगी शिव प्रतिमा तक जाने लगे हैं। यदि खेल विभाग, प्रशासनिक अमला या स्वयं सेवी संगठन यहां कुछ सुविधाएं प्रदान कर दें, तो छुट्टियों के इन दिनों में कई नौनिहाल तैराक बन सकते हैं।
कुछ दिनों से हम शौकियाना यहां कुछ बच्चों को तैराना सीखा रहे थे। अब तो यहां भीड़ लग गई हैं और करीब 20 से 25 छोटे बच्चे और 12 से 15 युवा तैरना सीख भी गए हैं। तैराकी तो यहां के खून में रचा-बसा खेल है। जनप्रतिनिधि और प्रशासन सहयोग करें, तो यह खेल वागड़ को नई पहचान दे सकता है।
निलेश सोनी
तैराकी हमारी सनातन संस्कृति से जुड़ा खेल है। इसको लेकर उपेक्षा सहज नजर आ रही है। यदि सरकार स्तर पर यहां अच्छा तरणताल एवं प्रशिक्षक उपलब्ध हो जाएं, तो वागड़ के दोनों ही जिलों को तैराकी के गोल्ड मेडलिस्ट मिल सकते हैं। स्वयंसेवी संगठन समय-समय पर स्पद्र्धा भी करवाए, तो प्रतिभाएं निखर सकती हैं।
भूपेश शर्मा

ट्रेंडिंग वीडियो