वक्रतुण्ड महाकाय, लम्बोदराय आदि जैसे विभिन्न नामों से पुकारे जाने वाले सभी देवों में अग्रपूजनीय श्रीगणेश के श्रद्धालुओं की कोई कमी नहीं है। हर घर के मुख्यद्वार पर प्रतिष्ठापित विघ्नहरण के प्रति आस्था की बयार चहुंओर है। शहर में करीब एक दर्जन से अधिक स्थानों पर शृंगारित सैकड़ों गणेश प्रतिमाएं हर किसी का मन मोह रही है। पीओपी से निर्मित इन प्रतिमाओं का गणेश चतुर्थी पर स्थापना के बाद अनंत चतुदर्शी को विसर्जित किया जाएगा।
आने लगे खरीदार
श्रीगणेश की प्रतिमाओं की खरीद के लिए शहर के अलावा आस पास के ग्रामीण इलाकों से भी लोग आने शुरू हो गए हैं। बांसवाड़ा के मूर्तिकारों की कारीगरी के खरीदार भी मुरीद हैं। प्रतिमाओं की बनावट व शृंगार ऐसा कि ये बोलती प्रतीत होती हैं। बाल गणेश की प्रतिमाएं भी हर किसी को अपनी ओर लुभा रही है।
श्रीगणेश की प्रतिमाओं की खरीद के लिए शहर के अलावा आस पास के ग्रामीण इलाकों से भी लोग आने शुरू हो गए हैं। बांसवाड़ा के मूर्तिकारों की कारीगरी के खरीदार भी मुरीद हैं। प्रतिमाओं की बनावट व शृंगार ऐसा कि ये बोलती प्रतीत होती हैं। बाल गणेश की प्रतिमाएं भी हर किसी को अपनी ओर लुभा रही है।
यहां सज रही प्रतिमाएं
मुख्यालय पर उदयपुर रोड, कस्टम चौराहा, दाहोद रोड, डूंगरपुर रोड, कॉलेज रोड, गांधी मूर्ति, कुशलबाग मैदान के पास, राज तालाब के पास समेत शहर में कई स्थानों पर प्रतिमाएं तैयार करनेका काम चल रहा है।
मुख्यालय पर उदयपुर रोड, कस्टम चौराहा, दाहोद रोड, डूंगरपुर रोड, कॉलेज रोड, गांधी मूर्ति, कुशलबाग मैदान के पास, राज तालाब के पास समेत शहर में कई स्थानों पर प्रतिमाएं तैयार करनेका काम चल रहा है।
मेहनत भी खूब
एक मूर्तिकार ने बताया कि वह हर देवी-देवताओं की प्रतिमाएं बनाता है। इन प्रतिमाओं को हूबहू उसी देव का रूप प्रदान करने में उन्हें खूब मेहनत करनी पड़ती है। घास मिश्रित बड़ी प्रतिमा को बनाने में पीओपी के आठ से दस कट्टे लग जाते हैं। छोटी में आधे से एक कट्टा लगता है। इसके बाद शृंगार में पोशाकी वस्त्र व पांव से लेकर सिर तक रूप निखारने में एकाग्रचित होकर बारीकी से काम किया जाता है।
एक मूर्तिकार ने बताया कि वह हर देवी-देवताओं की प्रतिमाएं बनाता है। इन प्रतिमाओं को हूबहू उसी देव का रूप प्रदान करने में उन्हें खूब मेहनत करनी पड़ती है। घास मिश्रित बड़ी प्रतिमा को बनाने में पीओपी के आठ से दस कट्टे लग जाते हैं। छोटी में आधे से एक कट्टा लगता है। इसके बाद शृंगार में पोशाकी वस्त्र व पांव से लेकर सिर तक रूप निखारने में एकाग्रचित होकर बारीकी से काम किया जाता है।