इधर, मालवीया शनिवार को नई दिल्ली नहीं गए और जयपुर ही थे। मालवीया ने खुद कहा था कि वे गहलोत के साथ 30 सालों से जुड़े हैं और साथ ही रहेंगे। इसके बावजूद उनके दिल्ली पहुंचने की बात कही गई। मालवीया के जयपुर में होने की पुष्टि पार्टी प्रवक्ता मनीषदेव जोशी ने भी की है।
निर्दलीय विधायक रमिला खडिय़ा रविवार को कुशलगढ़ क्षेत्र में ही रही। गत दिनों विधायक सुरेश टांक से मुलाकात के सवाल पर कहा कि बांसवाड़ा में उनके भाई हैं, जिनसे मुलाकात के लिए वे आए थे, तब फोन आया था तो मेरी मुलाकात हुई थी। हम सभी निर्दलीय विधायक सीएम से मिलने सहित अन्य अवसरों पर भी साथ ही रहते हैं। विधानसभा में सुरेश टांक व हम साथ ही बैठते हैं। खरीद-फरोख्त की बात गलत है। हम जन्म से कांग्रेसी हैं। हमको कोई खरीद नहीं सकता है। विधायकों को जयपुर बुलावे पर कहा कि जयपुर से फोन आया था, लेकिन पति की पुण्यतिथि होने से नहीं जा पाई हूं। इसके बाद मैं भी जयपुर जाऊंगी। गौरतलब है कि एसीबी की ओर दर्ज मुकदमे में नामजद निर्दलीय विधायक टांक ने शनिवार को कहा था कि बांसवाड़ा में भाई से मिलने गया था, वहां खडिय़ा से 15 मिनट मुलाकात हुई थी।
एसओजी की जांच और एसीबी के नए केस को लेकर चल रही चर्चाओं के बीच कुशलगढ़ विधायक रमीला खडिय़ा के पास सीआईडी से कॉल आया। विधायक ने बताया कि एसओजी या एसीबी से उन्हें किसी ने संपर्क नहीं किया। सीआईडी जयपुर से कॉल आया, जिसमें उन्होंने टांक से मुलाकात को लेकर जानकारी मांगी। जो कुछ हुआ, पहले ही बता चुकी थी इसलिए सीआईडी को भी वही दोहरा दिया।
इधर, सूत्रों के अनुसार प्रदेश में कांगे्रस की सरकार बनने पर विधायक मालवीया को बनाए जाने की पूरी संभावना थी, लेकिन मंत्रिमंडल में उन्हें सम्मिलित नहीं किए जाने से उन्हें असंतुष्ट खेमे में शामिल होना माना जा रहा था। उनके समर्थकों ने उदयपुरा बड़ा में सरकार बनने के बाद हुई गहलोत की सभा में भी यह बात कही थी, लेकिन मालवीया ने बाद में स्पष्ट कर दिया था कि उनकी गहलोत व पार्टी से नाराजगी नहीं है। वहीं खडिय़ा को कांगे्रस से टिकट नहीं मिला था और वे निर्दलीय चुनाव लडकऱ जीती। ऐसे में यह दोनो नाम सुर्खियों में आये
हालांकि जिला कांगे्रस में मालवीया व बामनिया के अपने धड़े हैं। जिलाध्यक्ष चांदमल जैन, पूर्व विधायक नानालाल निनामा मालवीया गुट के माने जाते हैं। वहीं पूर्व विधायक कांता भील सहित पार्टी के बांसवाड़ा विधानसभा क्षेत्र के आला नेता बामनिया गुट में माने जाते हैं। गहलोत की पिछली बांसवाड़ा यात्रा के दौरान भी सर्किट हाउस में दोनों धड़ों से जुड़े नेता अलग-अलग नजर आए थे और कांगे्रस कार्यालय में हुई बैठकों में भी कई बार यह गुटबाजी साफ नजर आई है।