scriptअच्छा… तो इस विशेष कारण से वागड़ में 15 दिनों बाद शुरू होता है पवित्र सावन माह | Sawan Maas In Rajasthan : Sawan month starts in Banswara Dungarpur | Patrika News

अच्छा… तो इस विशेष कारण से वागड़ में 15 दिनों बाद शुरू होता है पवित्र सावन माह

locationबांसवाड़ाPublished: Jul 22, 2019 03:18:04 pm

Submitted by:

Varun Bhatt

Sawan Maas In Wagad, Sawan Maas In Banswara, Sawan Month, Shravan Maas, Shravan Mas, Shravan Month : सूर्य के कर्क रेखा में प्रवेश के बाद अमावस्या से शुरू होता है वागड़ में सावन का महीना, बांसवाड़ा में साढ़े बारह स्वयंभू (ज्योतिर्लिंग) का होना भी है प्रभाव

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अच्छा… तो इस विशेष कारण से वागड़ में 15 दिनों बाद शुरू होता है पवित्र सावन माह

रामकरण कटारिया. बांसवाड़ा. जनजातीय जिले बांसवाड़ा समेत वागड़ क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति और खगोलीय ग्रह-नक्षत्रों की चाल ने यहां हिन्दी महीनों की गणना में स्थानीय धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप अंतर बना लिया है। हालांकि इस अंतर से तीज-त्योहारों की तिथियों पर कोई असर नहीं है। ये समान रूप से मनाए जाते रहे हैं। बांसवाड़ा के अलावा डूंगरपुर, सौराष्ट्र, आधा महाराष्ट्र और पूरे गुजरात में भी 15 दिन बाद ही सावन शुरू होता है। इसलिए यहां के पंडित किसी मुहूर्त या लग्न पत्रिका आदि में आषाढ़ आदि संवत अंकित करते हैं। ज्योतिषियों के अनुसार हिन्दी महीनों की गणना चन्द्रमा की घटती-बढ़ती कलाओं व उसकी पूर्णता के आधार पर शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष की तिथियों का एक चक्र पूरा होने की अवधि से की जाती रही है। ये तिथियां सभी जगह प्रचलित व मान्य है, पर वागड़ अंचल में हिन्दी वर्ष का एक महीना श्रावण 15 दिन बाद शुरू होता है। इसका कारण है कि अन्य स्थानों पर पूर्णिमा से पूर्णिमा तक हिन्दी महीनों की गिनती की जाती है, जबकि वागड़ अंचल में अमावस्या से अमावस्या तक। इसी के चलते यह अंतर है। जहां पूरे देश-प्रदेश में श्रावण मास के आधा गुजरने पर हरियाली अमावस्या मनाई जाती है, वहीं वागड़ क्षेत्र में इस तिथि से श्रावण मास की शुरुआत होती है। हालांकि तीज-त्योहारों की तिथियां समान हंै। यहां भी इसी दिन हरियाली अमावस्या मनाई जाती है। यह परंपरा 250-300 वर्ष से भी पहले से चली आ रही है।
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सूर्य की गति और कर्क रेखा का प्रभाव
वागड़ अंचल में सावन माह 15 दिन बाद से शुरू होने के पीछे एक मुख्य कारण सूर्य की गति और कर्क रेखा का यहां से गुजरना भी है। शहर के पंडित व ज्योतिष शास्त्रों का ज्ञान रखने वालों के अनुसार गुरु पूर्णिमा तिथि से सूर्य कर्क रेखा में प्रवेश कर जाता है। इसी तिथि से सभी जगह आषाढ़ माह की विदाई और सावन की शुरुआत हो जाती है, लेकिन वागड़ में इस तिथि के बाद आने वाली पहली अमावस्या यानी हरियाली अमावस्या से सावन की शुरुआत मानी जाती है। पंडितों के अनुसार इस तिथि से ही वागड़ में हिन्दी साल की गणना होती है। इसके अलावा दूसरा मुख्य कारण यह भी बताते हैं कि संवत 1700 से पूर्व तक वागड़ क्षेत्र मेवाड़ के रजवाड़ों के संपर्क में था, उसके बाद से यह अलग हो गया और गुजरात के नजदीक होने से यहां के रहन-सहन, भाषा, धर्म-कर्म आदि जैसी संस्कृति का प्रभाव लोगों पर असर जमाता गया। गुजराती और वागड़ी भाषा भी मिलती-जुलती है। गुजरात के सभी हिन्दी पंचांगों में अमावस्या से अमावस्या तक हिन्दी महीनों की गिनती होती है। इसी के असर से वागड़ में भी अमावस्या से अमावस्या तक महीनों की गिनती की जाती है।
साढ़े बारह ज्योतिर्लिंग का भी प्रभाव
बांसवाड़ा को लोढ़ी काशी भी कहते है। प्रदेश में अकेला वागड़ क्षेत्र ही ऐसा है, जहां साढ़े बारह ज्योतिर्लिंग हंै। जिनमें कागदी स्थित अंकलेश्वर महादेव, वनेश्वर क्षेत्र स्थित वनेश्वर महादेव, नीलकंठ महादेव, धनेश्वर, कालिका माता स्थित रामेश्वर महादेव, राज तालाब स्थित धुलेश्वर महादेव, महल स्थित बिलेश्वर महादेव, नागरवाड़ा में नीलकंठ महादेव, चांदपोल गेट मालीवाड़ा में गुप्तेश्वर महादेव, सिद्धनाथ महादेव जवाहर पुल, त्रयम्बकेश्वर महादेव एमजी अस्पताल के पास, घंटालेश्वर महादेव और अद्र्ध स्वयंभू भगोरेश्वर महादेव महालक्ष्मी चौक स्थित है। इसका आधा शिवलिंग परतापुर के पास भगोरा गांव में है।
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ये बोले पंडित व जानकार
कृष्ण पक्ष को महत्व
वागड़ क्षेत्र में हिन्दी माह कृष्ण पक्ष से शुरू होता है, जबकि अन्य जगह शुक्ल पक्ष से। बस इतना ही फर्क है। जिसके चलते 15 दिन बाद से सावन शुरू होता है। शेष तिथियां, त्योहार, उत्सव सभी एक समान ही मनाए जाते रहे हैं।
पंडित गिरिशचन्द्र पंड्या
आस्था की बात है
हिन्दी महीनों के अनुसार ही तीज-त्योहार मनाए जाते हैं। केवल वागड़ में सावन का महीना ही 15 दिन बाद से शुरू होता है। यह आस्था का विषय हो सकता है।
पंडित पन्नालाल, भगोरेश्वर मंदिर।
कर्क रेखा और सूर्य की चाल
वागड़ क्षेत्र में चन्द्रमा की कलाओं से नहीं, सूर्य की कर्क रेखा में प्रवेश की गति तिथि से हिन्दी महीनों की गणना शुरू होती है। इसी के कारण सावन 15 दिन बाद से शुरू होता है। क्योंकि सूर्य गुरु पूर्णिमा से कर्क रेखा में प्रवेश करता है।
पंडित अवध बिहारी।
अमावस्या की बड़ा महत्व
अमावस्या से ही महीनों की गिनती होती है। वागड़ क्षेत्र में अमावस्या का महत्व अधिक है। यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। कर्क रेखा व सूर्य की गति का भी प्रभाव है।
पंडित हरिश शर्मा, त्रयम्बंकेश्वर मंदिर।
संपर्क का पड़ रहा असर
पहले वागड़ अंचल मारवाड़ से अटेच था। उसके बाद गुजरात से संपर्क में है। वहां श्रावण माह अमावस्या से शुरू होता है। उज्जैन व महाराष्ट्र में डेढ़ माह सावन चलता है। यहां के पंडित व पूजापाठी वहां आते-जाते हैं। आमजन भी आते-जाते व रहने लग गए। इन सबके प्रभाव से यहां भी अमावस्या से ही सावन 15 दिन बाद शुरू होता है।
पंडित रामेश्वर जोशी, ज्योतिषी।
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