ये गडरिये भेड़ों को चराने के लिए मध्य प्रदेश के दूरस्थ जिलों तक जाते हैं, जिसके लिए राजस्थान के गरीब और पिछड़े आदिवासी जिलों उदयपुर, प्रतापगढ़ और बांसवाड़ा के गांवों और कस्बों से गुजरने वाला रास्ता चुनते हैं ताकि बच्चे आसानी से मिल जाएं।
बाल कल्याण समिति बांसवाड़ा के सदस्य मधुसूदन व्यास और चाइल्ड लाइन 1098 बांसवाड़ा के जिला समन्वयक परमेश पाटीदार ने बताया कि अभी तक कार्रवाई में जितने भी गडरियों के पास से बच्चे छुड़वाए गए हैं उनमें से 95 फीसदी गडरिये पाली और उसके आसपास इलाकों के ही हैं।
हाल ही में मध्य प्रदेश के खरगोन से 9 बच्चे चाइल्ड लाइन और खरगोन पुलिस ने गडरियों के चंगुल से छुड़वाए। पकड़े गए तीन गडरियों में दो पाली और एक जालोद जिले का है और सभी बच्चे निर्धन और आदिवासी हैं।
इस वर्ष ही मार्च, अप्रैल और मई में 6 बच्चे पाली जिले के गडरियों की गिरफ्त से आजाद करवाए गए थे। सभी 6 बच्चे एक ही पंचायत केलमेला के थे। इन बच्चों को बिचौलिये की मदद से गडरियों नेअनुबंध पर लिया था।
– बच्चों का मेहनती और भोला होना
– निर्धन परिवार से होना
– कोई डिमांड न होना
(जैसाकि गडरिये कालिया(बदला हुआ नाम) ने बताया)
इसलिए दूरस्थ गांवों में ढूंढते हैं
– निर्धन परिवारों का आसानी से मिल जाना
– प्रशासन एवं पुलिस की दखलअंदाजी कम होना
– बड़े और पीडि़त परिवारों का मिल जाना
(जैसा कि गडरिये रोमा(बदला हुआ नाम) ने बताया)
इसलिए बिचौलिये का सहारा
– इन जिलों में परिचय न होना
-बिचौलियों की स्थानीय पहचान
– गांव का होने के कारण बच्चों के माता-पिता विश्वास करते हैं
(जैसाकि गडरिये भूरा(बदला हुआ नाम) ने बताया)