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बचपन के सौदागर गडरिये कर रहे ‘मारवाड़’ का नाम बदनाम, चंद रुपयों में गिरवी रखकर आदिवासी बच्चों का कर रहे शोषण

locationबांसवाड़ाPublished: Aug 29, 2019 01:58:15 pm

Submitted by:

Varun Bhatt

– स्वार्थ की खातिर बचपन की ‘हत्या’ पाली के गडरियों के सबसे ज्यादा रंगे हंै हाथ

बचपन के सौदागर गडरिये कर रहे ‘मारवाड़’ का नाम बदनाम, चंद रुपयों में गिरवी रखकर आदिवासी बच्चों का कर रहे शोषण

बचपन के सौदागर गडरिये कर रहे ‘मारवाड़’ का नाम बदनाम, चंद रुपयों में गिरवी रखकर आदिवासी बच्चों का कर रहे शोषण

बांसवाड़ा. एक तरफ जनजाति उत्थान के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च और दूसरी तरफ अपने लालच की खातिर सैकड़ों बच्चों का भविष्य अंधकारमय करने वाले ‘सौदागरों’ की तरफ तनिक भी ध्यान नहीं। ये सौदागर हंैं गडरिये जो आदिवासी परिवारों की गरीबी और मजबूरी का बेजा फायदा उठाकर उनका माता पिता के साथ चंद रुपयों में सौदा कर रहे हैं और उन्हें भेड़ों की देखभाल के काम में लगाकर शोषण कर रहे हैं। इससे बच्चों की पढ़ाई चौपट हो रही है और वे भविष्य की चुनौतियों से सामना करने के लिए तैयार भी नहीं हो पा रहे हैं। बच्चों के बचपन छीनने के कुकृत्य में सबसे ज्यादा किसी के हाथ रंगे हैं तो वह पाली जिले के गडरिये हैं। गत कुछ वर्षों में कई ऐसे मामले समाने आ भी चुके हैं, जहां वागड़-कांठल के बच्चों को बालश्रम के वार्षिक अनुबंध पर गडरिये ले गए और मारपीट, यातना और शोषण से परेशान होकर बच्चे गडरिये के चंगुल से भाग खड़े हुए। बच्चों के शोषण के इस खेल में कई बिचौलिये भी हैं जो बच्चों के माता- पिता और गडरियों के बीच कड़ी बनकर काम कर रहे हैं।
इसलिए चुनते हैं लम्बा रास्ता
ये गडरिये भेड़ों को चराने के लिए मध्य प्रदेश के दूरस्थ जिलों तक जाते हैं, जिसके लिए राजस्थान के गरीब और पिछड़े आदिवासी जिलों उदयपुर, प्रतापगढ़ और बांसवाड़ा के गांवों और कस्बों से गुजरने वाला रास्ता चुनते हैं ताकि बच्चे आसानी से मिल जाएं।
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ज्यादा गडरिये पाली के
बाल कल्याण समिति बांसवाड़ा के सदस्य मधुसूदन व्यास और चाइल्ड लाइन 1098 बांसवाड़ा के जिला समन्वयक परमेश पाटीदार ने बताया कि अभी तक कार्रवाई में जितने भी गडरियों के पास से बच्चे छुड़वाए गए हैं उनमें से 95 फीसदी गडरिये पाली और उसके आसपास इलाकों के ही हैं।
केस नंबर-1 खरगोन में गडरियों से छुड़ाए नौ बच्चे
हाल ही में मध्य प्रदेश के खरगोन से 9 बच्चे चाइल्ड लाइन और खरगोन पुलिस ने गडरियों के चंगुल से छुड़वाए। पकड़े गए तीन गडरियों में दो पाली और एक जालोद जिले का है और सभी बच्चे निर्धन और आदिवासी हैं।
केस नंबर-2 एक ही पंचायत के छह बच्चे
इस वर्ष ही मार्च, अप्रैल और मई में 6 बच्चे पाली जिले के गडरियों की गिरफ्त से आजाद करवाए गए थे। सभी 6 बच्चे एक ही पंचायत केलमेला के थे। इन बच्चों को बिचौलिये की मदद से गडरियों नेअनुबंध पर लिया था।
इसलिए चुनते हैं आदिवासी बच्चों को
– बच्चों का मेहनती और भोला होना
– निर्धन परिवार से होना
– कोई डिमांड न होना
(जैसाकि गडरिये कालिया(बदला हुआ नाम) ने बताया)
इसलिए दूरस्थ गांवों में ढूंढते हैं
– निर्धन परिवारों का आसानी से मिल जाना
– प्रशासन एवं पुलिस की दखलअंदाजी कम होना
– बड़े और पीडि़त परिवारों का मिल जाना
(जैसा कि गडरिये रोमा(बदला हुआ नाम) ने बताया)
इसलिए बिचौलिये का सहारा
– इन जिलों में परिचय न होना
-बिचौलियों की स्थानीय पहचान
– गांव का होने के कारण बच्चों के माता-पिता विश्वास करते हैं
(जैसाकि गडरिये भूरा(बदला हुआ नाम) ने बताया)
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