विभाग के अधिकृत सूत्रों के अनुसार बांसवाड़ा का व्यापार मण्डी परिसर में स्थानांतरित नहीं है। इसलिए व्यापारी सीधा किसान से माल खरीदकर रात्रि में विभिन्न सााधनों से अलग-अलग मार्गों से गुजरात एवं मध्य प्रदेश ले जाते हंैं। कृषि जीसों को ले जाने वाले वाहनों से सीमा पर स्थित चेक पोस्टों पर बिल एवं बिल्टी, निर्यात प्रतिवेदन की एक प्रति प्राप्त करने की आवश्यकता महसूस किए जाने पर मण्डी समिति ने निदेशालय से अनुमोदन करवाया। इसके साथ ही 26 मार्च 2004 को जिले की सभी चेक पोस्टों पर सेल्स टैक्स, मण्डी राजस्व व कृषि विभाग के कर्मियों को लगाया गया। साथ ही सुनिश्चित किया गया कि चेक पोस्टों से ले जाने वाले सभी वाहनों से मण्डी समिति का गेट पास प्राप्त हो जाए। इससे वाणिज्य कर व मण्डी शुल्क चोरी की संभावना समाप्त हो जाए। गेट पास लागू किए जाने से मण्डी शुल्क में वृद्धि हुई, लेकिन व्यापारियों की ओर से इस व्यवस्था का विरोध किए जाने के कारण इस व्यवस्था को वापस लेना पड़ा।
मण्डी सचिव संजीव पण्ड्या ने बताया कि मण्डी के जिलेभर में करीब 700 लाइसेंसी पंजीकृत हैं। इनमें से करीब 150 व्यापारी सक्रिय है, जिनकी ओर से लगातार कृषि जींस का व्यापार किया जाता है। इसके अलावा मण्डी टैक्स एवं अन्य कर चुकाए जाते हैं।
बांसवाड़ा में मुख्य रूप से कृषि जींसों में गेहूं, सोयाबीन व मक्का की पैदावार होती है। इसके अलावा छोटे स्तर पर कपास व अन्य फसल है। यहां को ज्यादार माल गुजरात, मध्य प्रदेश के अलावा प्रदेश के कोटा, बूंदी एवं अन्य जिलों में जाता है।
जानकारी के अनुसार ज्यों ज्यो साल गुजरते गए जिले में बुवाई के हैक्टेयर बढऩे के साथ ही पैदावार बढ़ी तो व्यापार बढ़ता चला गया। वर्ष 1990-91 में करीब मण्डी शुल्क के रूप में करीब 14.16 लाख का राजस्व प्राप्त हुआ था जो अब बढकऱ गत वर्ष 2017-18 में करीब 233.70 लाख तक पहुंच गया है।