scriptBanswara : बच्चों के हिस्से का खाद्यान्न जिम रहे विभागीय कारिंदे, दुग्ध की आपूर्ति में भी हेराफेरी | staff is eating mid day meal of Children's, cheating in milk supply | Patrika News

Banswara : बच्चों के हिस्से का खाद्यान्न जिम रहे विभागीय कारिंदे, दुग्ध की आपूर्ति में भी हेराफेरी

locationबांसवाड़ाPublished: Sep 01, 2019 11:01:36 am

Submitted by:

deendayal sharma

बांसवाड़ा जिले में दाल-रोटी कैसी है, दूध दे रहे या नहीं, कौन गैरहाजिर, कौन लेटया कहां लापरवाही देखा। फिर रिपोर्ट बनाई, उच्चाधिकारियों को भेजी और निर्देश पर फौरी कार्रवाइयां। मिड डे मील योजना की मॉनिटरिंग के नाम पर अब तक यही चल रहा है, लेकिन असल में सरकारी स्कूलों में बच्चों को भोजन के लिए सौंपे जा रहे खाद्यान्न की जमकर हेराफेरी हो रही है और इस पर कोई ध्यान तक नहीं दे रहा।

बांसवाड़ा में बच्चों के हिस्से का खाद्यान्न जिम रहे विभागीय कारिंदे, दुग्ध की आपूर्ति में भी हेराफेरी

बांसवाड़ा में बच्चों के हिस्से का खाद्यान्न जिम रहे विभागीय कारिंदे, दुग्ध की आपूर्ति में भी हेराफेरी

बांसवाड़ा. दाल-रोटी कैसी है, दूध दे रहे या नहीं, कौन गैरहाजिर, कौन लेट या कहां लापरवाही देखा। फिर रिपोर्ट बनाई, उच्चाधिकारियों को भेजी और निर्देश पर फौरी कार्रवाइयां। जिले में मिड डे मील योजना की मॉनिटरिंग के नाम पर अब तक यही चल रहा है, लेकिन असल में सरकारी स्कूलों में बच्चों को भोजन के लिए सौंपे जा रहे खाद्यान्न की जमकर हेराफेरी हो रही है और इस पर कोई ध्यान तक नहीं दे रहा।
यह चौंकाने वाला यह तथ्य प्रशासन की ओर से कराए स्कूलों के मुआयने के दौरान पेश रिपोर्ट की पत्रिका टीम की पड़ताल में सामने आया हैं। स्कूल रेकार्ड को गंभीरता से परखने पर पता चला कि जिले के कुछ स्कूलों में तो बच्चे आए हों या नहीं, लेकिन उनके नाम से खाद्यान्न का खर्च-खाता बनाया जा रहा है। फिर उसी अनुसार एडजस्टमेंट और भुगतान भी हो रहा है। यही नहीं, अन्नपूर्णा योजना में दूध का भी घपला दिखलाई दिया है। इसमें शिक्षक अपने ही कार्मिकों से कम मात्रा और गुणवत्ता के दूध की खरीद कर स्कूल रेकार्ड पर ज्यादा बताते हुए मिलीभगत से सरकार को चूना लगा रहे हैं।
वीडियो…परिवार पर आर्थिक संकट आया, तो दस दिन की कोशिश में बांसवाड़ा की तुलसी बन गई ऑटो चालक

10 किलो क्षमता का बर्तन, बता दी 20 किलो की खिचड़ी

उच्च प्राथमिक विद्यालय, खटवाड़ा में स्टॉक के भौतिक सत्यापन से पता चला कि यहां 264 के नामांकित के मुकाबले 29 अगस्त को 161 बच्चे पोषाहार से लाभान्वित बताए गए। स्टॉक रजिस्टर में इन बच्चों पर 20 किलो 400 ग्राम चावल व्यय होना बताया गया। फिर रसोईघर देखने पर मालूम हुआ कि जिस बर्तन में खिचड़ी बनी, उसकी क्षमता ही 10 किलो चावल से ज्यादा की नहीं है। पूछताछ पर कूक कम हेल्पर ने भी बताया कि वह पांच साल में इन्हीं बर्तनों में खाना पका रही है। ऐसे में सीधा 10 किलो चावल का घपला उजागर हुआ।
निकासी बताई 20 किलो आटा, रोटियां परोसी आधे से भी कम
यूपीएस, खंटवाड़ा में ही 30 अगस्त के रेकार्ड में 145 बच्चों के लिए 18 किलो 650 ग्राम गेहूं खर्च होना बताया गया। फिर बनी हुई रोटियां देखीं, तो 10 किलो आटे की भी प्रतीत नहीं हुई। पंगत में बैठे बच्चों को रोटी भी एक से दो ही परोसी गई। ऐसे में स्पष्ट हो गया कि स्टॉक से घटाई आटे की मात्रा के मुकबले इस्तेमाल में आधा आटा ही लिया गया।
रेकार्ड पर दूध सप्लायर सहकारी समिति, ला रहा चपरासी

खटवाड़ा स्कूल रेकार्ड में बच्चों के लिए दूध की सप्लाई सहकारी महिला दुग्ध उत्पादक समिति, घलकिया से लिया जाना बताया, जबकि दूध स्कूल का ही चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी रमणलाल पाटीदार द्वारा लाने की पुष्टि हुई। इसका भुगतान भी पाटीदार को ही किए जाने के तथ्य सामने आए। ऐसे में गुणवत्ता, मात्रा सही होने की बात करना बेमानी ही है।
खिचड़ी की जगह दूध-रोटी, उसका भी दुगुना उठाव
खटवाड़ा गांव के प्राथमिक विद्यालय में अजीब हालात दिखे। 103 नामांकित बच्चों के इस स्कूल में चावल का स्टॉक शून्य था, जबकि 29 अगस्त को खिचड़ी खिलानी थी। यहां रेकार्ड से 29 और 30 अगस्त को क्रमश: 8 और 5.900 किलोगेहूं के आटे की रोटियां बनाकर खिलाना सामने आया। इसे लेकर रजिस्टर जांचने पर पता चला कि रोज की जितनी निकासी बताई जा रही, उससे आधा गेहूं भी स्टॉक में उपलब्ध नहीं था। ऐसे में महज आंकड़ों में खेल कर चूना लगाने की पुष्टि हुई। यहां दूध की मात्रा में भी यही गड़बड़ी मिली।
फैक्ट फाइल
कुल स्कूल
2659

लाभान्वित विद्यार्थी
2 लाख 75 हजार

कक्षा एक से पांचवीं तक
4 रुपए 41 पैसा प्रति विद्यार्थी प्रतिदिन

छठी से आठवीं कक्षा तक
6 रुपए 71 पैसा प्रति विद्यार्थी प्रतिदिन

दूध
शहर में 40 रुपए लीटर
ग्रामीण क्षेत्र में 35 रुपए लीटर
इस तरह चल रहा आधा खर्च और आधे का खेल

कायदे से विद्यालयों में प्रत्येक कार्यदिवस पर दूध, चावल, गेहूं, दाल आदि सामग्री बच्चों की उस दिन की उपस्थिति के आधार पर निर्धारित सरकारी मापदंड अनुसार स्टॉक घटाया जाता है। फिर स्टॉक रजिस्टर के अनुसार ही भुगतान किया जाता है। इस नियमित व्यवस्था में जब बच्चे कम आएं, तब भी बराबर निकासी बताकर रजिस्टर में खर्च दर्शा दिया जाता है। ऐसे में बच्चों को उपयोग में आधा खर्च होता है, जबकि बचे हुए पोषाहार से खेल हो रहा है।
इनका कहना है…

जिला परिषद के पंचायत प्रसार अधिकारी हरीशचंद्र पाटीदार का कहना है कि यह सही है कि खटवाड़ा के स्कूलों में मिड डे मील के लिए इस्तेमाल खाद्यान्न की मात्रा से दुगुनी मात्रा स्टॉक से घटाई गई। दूध आपूर्ति में भी गड़बड़ी हैं। ऐसे मामले और स्कूलों में होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इसकी तथ्यात्मक रिपोर्ट जिला कलक्टर को भेजी गई है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो