एक बार खोल तो लेते छात्रावास के विद्यार्थियों का मानना है कि यहां अंदर जाने से अनहोनी होती है। जबकि विशेषज्ञों का मत है कि ये भ्रम है। ऐसा आमतौर पर होता नही है। छात्रावास से जुड़े विभाग व अधीक्षक को कमरा खोलकर देख लेना चाहिए। साथ ही विद्यार्थियों की काउंसलिंग करनी चाहिए। इधर, छात्रावास अधीक्षक ने भी इस डर का निराकरण करने की बजाय शौचालय एवं कमरे को लेकर दूरी बना दी है। गौरतलब है कि छात्रावास में 70 जनजाति विद्यार्थी अध्ययनरत हैं।
विद्यार्थियों की जुबानी छात्रावास में अध्ययनरत महेंद्र डामोर का कहना है कि अनहोनी के डर से शौचालय का उपयोग नहीं किया जा रहा है। बारहवीं के छात्र महिपाल व रणजीत ने बताया कि हम चार वर्ष से अध्ययनरत हैं। यहां क्या है पता नहीं? बस पूर्व के सहपाठियों से सुना है कि इन्हें मत खोलना।
भय है कारण पिछले चार वर्षों से दो कमरों एवं शौचालय पर भय के चलते ताला लगा दिया है। अधिकारियों के निरीक्षण में भी विद्यार्थी ये जानकारी दे चुके हैं।
विनोद गादिया, छात्रावास अधीक्षक
विनोद गादिया, छात्रावास अधीक्षक
सकारात्मक सोचना होगा पहले तो इसकी हकीकत को जानना होगा। आमतौर पर हम जैसा सुनते है वैसा ही दिखता है। ऐसे में विद्यार्थियों को सकारात्मक सोच के साथ दिमाग से अनहोनी के ख्याल निकालने होंगे।
नीतिशा, सेड्रिक मनोवैज्ञानिक
नीतिशा, सेड्रिक मनोवैज्ञानिक