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Patrika Impact : निखर सकता है हमारा दबा हुनर, तैराकी दे सकती है वागड़ को अलग पहचान

locationबांसवाड़ाPublished: Jun 11, 2018 01:22:35 pm

Submitted by:

Ashish vajpayee

सरकार एवं खेल विभाग ने दिखाई सजगता, प्रशिक्षक एवं तरणताल की मिल सकती है सौगात

banswara

Patrika Impact : निखर सकता है हमारा दबा हुनर, तैराकी दे सकती है वागड़ को अलग पहचान

बांसवाड़ा/डूंगरपुर. वागड़ के गांव-गांव और ढाणी-ढाणी में नदी, तालाबों एवं पोखरों में घंटों तैराकी का हुनर दिखाने वाले हमारे नन्हें तैराकों की प्रतिभा को निखारने की दिशा में सरकार एवं खेल विभाग ने सजगता दिखाई है। जनजाति खेलकूद प्रशिक्षण शिविर के समापन समारोह में जन स्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग के राज्यमंत्री सुशील कटारा एवं खेल परिषद् जयपुर के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी महेश सैनी ने वागड़ की दबी पड़ी इस प्रतिभा की मुक्त कंठ से सराहना करते हुए हरसंभव मदद का ठोस आश्वासन दिया।
Video : वागड़ के इन छोरों का हुनर बेमिसाल, गहरे पानी में घंटो तक दिखाते कमाल

कटारा ने कहा कि वर्षों तक इस क्षेत्र में तीरंदाजी की नैसर्गिंक प्रतिभाएं दम तोड़ रही थी। पर, लोकतंत्र के सजग प्रहरी के रुप में पत्रकारिता ने इस खेल को उभारने का समय-समय पर आह्वान किया और सरकार ने जनजाति क्षेत्र में तीरंदाजी को लेकर कई तरह की योजनाएं स्वीकृत की। इससे अब यहां से कई राष्ट्रीय स्तर के तीरंदाज निकल रहे हैं। ठीक इसी तरह अब पत्रिका ने जनजाति क्षेत्र में तैराकी स्पद्र्धाओं एवं कोच की आवश्यकता बताई है। पत्रिका ने सरकार को नई सोच दी है। प्रयास किया जाएगा कि जल्द ही ग्राम, ब्लॉक एवं जिला स्तर पर जूनियर एवं सीनियर वर्ग की तैराकी स्पद्र्धा आयोजित करवाए। इससे धीरे-धीरे इस क्षेत्र में इस खेल से भी अच्छी प्रतिभाएं निकलेगी।
वहीं, सैनी पत्रिका की न्यूज को संभालकर ले गए। सैनी ने कहा कि वह जयपुर में जाकर प्रयास करेंगे कि वागड़ के दोनों ही जिलों में एक-एक तैराकी का कोच भेजा जाए तथा एक उच्च स्तरीय तरणताल स्वीकृत किया जाए। सरकार के पास खेलों के लिए बजट की कोई कमी नहीं है। बस बताने की जरूरत थी। आज पत्रिका ने यह नई दिशा दी है।
तैराकी दे सकती है पहचान
राजस्थान पत्रिका ने रविवार के अंक में वागड़ के गांव-गांव, ढाणी-ढाणी में है माइकल फ्लेप्स और कंचनमाला शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया था। इसमें बताया कि वागड़ के दोनों जिलों डूंगरपुर-बांसवाड़ा में देहात क्षेत्र के बच्चे बिना किसी कोच के तैराकी की हर विधा सीख जाते हैं और घंटों नदी-नालों तालाबों में जलक्रीड़ा करते हैं। यदि इन प्रतिभाओं को तराशा जाए, तो वागड़ को नई पहचान मिल सकती है।
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