बांसवाड़ा

6 शिक्षकों ने अपनी मेहनत से बदल दी इस गांव की तस्वीर… ड्राइवर और मजदूरों के गांव में युवा बनने लगे शिक्षक और पुलिस

– Teachers Day In Banswara, Teacher’s Day Special
– मोर में ड्राइवर नो मोर, अब शिक्षक और पुलिसकर्मियों का जोर- बांसवाड़ा जिले के मोर गांव में कुछ सरकारी शिक्षकों के प्रयास- कई युवा लगे सरकारी नौकरियों में अधिकांश पुलिस विभाग में कार्यरत

बांसवाड़ाSep 05, 2019 / 02:42 pm

Varun Bhatt

6 शिक्षकों ने अपनी मेहनत से बदल दी इस गांव की तस्वीर… ड्राइवर और मजदूरों के गांव में युवा बनने लगे शिक्षक और पुलिस

आशीष बाजपेई/ विनोद नायक. बांसवाड़ा. प्राचीन काल से ही गुरु आदरणीय और वंदनीय रहा है। इतिहास में गुरुओं की महिमा और उनके महान कार्यों के अनेकों उदाहरण हैं। द्रोणाचार्य जैसे गुरु की शिक्षा-दीक्षा में अर्जुन जैसा धनुर्धर तैयार हुआ। इन सफलताओं के पीछे शिष्य की लगने के साथ शिक्षक का समर्पण, त्याग, निगरानी, मागदर्शन ही था। ऐसी भावनाओं से ओतप्रोत शिक्षकों की आज भी कमी नहीं है और वे समाज के लिए कुछ कर गुजरने की भावना से निष्काम जुटे हैं। आदिवासी बहुल और पिछड़े जिले बांसवाड़ा के पांच शिक्षकों ने अपनी मेहनत से एक छोटे से मोर गांव की तस्वीर बदलकर रख दी। एक समय गांव में आठवीं से ज्यादा कोई पढ़ता नहीं था। खेती- पशुपालन, ड्राइवरी और मजदूरी तक ही जीवन सिमटा था। हालांकि कोई भी हुनर और धंधा बुरा नहीं होता, लेकिन इन पांच शिक्षकों ने शिक्षा की ऐसी अलख जगाई कि आज मोर की शिक्षकों और पुलिस वालों के गांव की पहचान कायम हो गई। शिक्षक दिवस के मौके पर इन्हीं पांच शिक्षकों की मेहनत और संघर्ष की कहानी को लेकर खास रिपोर्ट-
यह थी स्थिति
गणित के शिक्षक रितेश चंद्र शाह ने बताया कि वर्ष 1998 में मोर का मिडिल स्कूल रामावि में क्रमोन्नत हुआ था। सबसे बड़ी समस्या यह थी कि ग्रामीणों का जुड़ाव शिक्षा की ओर नहीं था। बच्चे 8वीं पास करने के बाद पढ़ाई छोड़ मवेशी पालन, ड्राइवर आदि कामों में लग जाते थे। बच्चियों की पढ़ाई तो बिल्कुल ही बंद कर दी जाती थी। कोई भी 8वीं के बाद पढऩा नहीं चाहता था।
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शिक्षकों की टीम रात में भी जाती थी बच्चों के घरों में
तत्कालीन प्रधानाचार्य अर्जुनलाल अहाड़ा ने बताया कि बच्चों को पढ़ाई करवाने के उद्देश्य से शिक्षक रात में देखते थे कि बच्चे घरों में पढ़ाई कर रहे हैं या नहीं। सभी शिक्षकों के लिए मोहल्ले निर्धारित कर दिए थे। बच्चे अधिक सफल हों इसके लिए अलग क्लास लगाकर पढ़ाई करवाते थे।
यह आई थी कठिनाइयां
बच्चों और अभिभावकों का शिक्षा के प्रति जुड़ाव न होना
ग्रामीणों का आर्थिक रूप से कमजोर होना
विद्यालय भवन से लेकर संसाधनों का अभाव
कम उम्र में धनोपार्जन करने के कारण बच्चों की पढ़ाई में रूचि न होना
(जैसा कि तत्कालीन प्रधानाचार्य अर्जुनलाल अहाड़ा ने बताया)
ऐसे किया संघर्ष
बच्चों के घरों में जाकर माता-पिता को पढ़ाई के बारे में बताते थे
उचित भवन न होने के कारण मंदिरों और वृक्ष के नीचे बच्चों को पढ़ाया
बच्चे के विद्यालय न आने पर घर में नियमित रूप से संपर्क किया
माता- पिता से लगातार मिलकर बच्चे की पढ़ाई के बारे में जानकारी साझा की
(जैसा कि तत्कालीन प्रधानाचार्य अर्जुनलाल अहाड़ा ने बताया)
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चार वर्षों में बदलने लगी थी तस्वीर
गांव के युवा और एसीबी में कार्यरत गणेश लबाना और ग्रामीणों ने बताया कि शिक्षकों के द्वारा मेहनत करने से बच्चों में पढ़ाई में रुचि बढ़ी। परिणाम यह हुआ कि दूर दराज गांवों के बच्चे भी मोर विद्यालय में आकर पढऩे लगे। इससे गांव में शिक्षा का वातावरण और अनुकूल हुआ।
इन शिक्षकों ने बदली तस्वीर
प्रधानाचार्य अर्जुन लाल अहाड़ा
गणित शिक्षक रितेश चंद्र शाह
विज्ञान शिक्षक पल्लव भट्ट
अंग्रेजी शिक्षक भवानी सिंह राव
शारीरिक शिक्षक वासुदेव शर्मा
सा. विषय शिक्षक उमेश चौबीसा

शिक्षकों की मेहनत का यह पड़ा असर
33 युवाओं ने 2008 के बाद पाई सरकारी नौकरी
14 युवा बने पुलिसकर्मी
16 युवा ने ज्वाइन किया शिक्षा विभाग
02 युवतियां जेल प्रहरी
01 युवती पुलिसकर्मी

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