scriptVIDEO : राजस्थान के इस गांव की कहानी, जहां 20 वर्षों से परिंदों के लिए पूरा गांव देता है दाना-पानी | The people of Sakariya village of Banswara serve birds | Patrika News

VIDEO : राजस्थान के इस गांव की कहानी, जहां 20 वर्षों से परिंदों के लिए पूरा गांव देता है दाना-पानी

locationबांसवाड़ाPublished: Jun 05, 2020 04:16:23 pm

Submitted by:

Varun Bhatt

World Environment Day, Rajasthan Environment : विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष, गढ़ी उपखंड के साकरिया गांव में पक्षियों की सेवा में जुटे ग्रामीण

VIDEO : राजस्थान के इस गांव की कहानी, जहां 20 वर्षों से परिंदों के लिए पूरा गांव देता है दाना-पानी

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अशोक स्वर्णकार/ परतापुर/ बांसवाड़ा. पक्षियों की घटती आबादी से चिंतित कई लोग, संस्थाएं आगे आकर इनकी प्रजातियों को बचाने में जुटी हैं। लेकिन बांसवाड़ा जिले गढ़ी उपखंड के साकरिया गांव के लोग पक्षियों की सेवा को जिन्दगी का हिस्सा बना चुके हैं और पंरपरा के तौर पर निर्वहन कर रहे हैं। गांव के लोगों का यह क्रम पिछले कई वर्षों से चला आ रहा है। जिसे सभी मिलजुलकर स्वयं की जिम्मेदारी मान अंजाम दे रहे हैं। इस प्रयास के तहत गांव में तीन स्थानों पर तकरीबन 12 से 15 किलो दाना पक्षियों के लिए रोजाना डाला जाता है। हजारों की संख्या में पक्षी गांव में दाना चुगने पहुंचते हैं।
ऐसे होता है प्रबंध
गांव के शिक्षक रमेश व्यास ने बताया कि प्रत्येक दीपावली पर गांव के लोग एकत्र होते हैं। जहां पक्षियों के दाना-पानी की व्यवस्था के लिए चर्चा के बाद किसी ग्रामीण को नियुक्त किया जाता है। गांव के प्रत्येक घर से लोग इच्छा अनुरूप अनाज निर्धारित स्थान पर जमा करा देते हैं। इस अनाज को नियुक्त किया गया व्यक्ति रोज सुबह गांव में निर्धारित तीन स्थानों पर पक्षियों के लिए अनाज का डाल देता है। साथ ही पानी के लिए बनाए गए हौज को साफ कर उसमें पानी भरता है। और गांव के लोगों का यह क्रम पिछले 20 वर्षों से चला आ रहा है। इसके तहत प्रति वर्ष 25 से 30 क्विंटल अनाज मुख्य रूप से धान, मक्का, गेहूं आदि का संग्रहण हो जाता है। जिनके अनाज की पैदावार नहीं होती है वह परिवार आर्थिक सहयोग करता है। जिससे पक्षियों के लिए बाजरा का प्रबंध किया जाता है। इस प्रकार पाराहेड़ा गांव के लोग भी पिछले कई वर्षो से पक्षियों का दाना चुगाने की प्रथा कायम रखी है।
ऐसे बनी परम्परा
गांव के मुखिया मोगजी पाटीदार ने बताया कि गांव का नाम डाकनियापाड़ा था। गढ़ी के तत्कालीन राव हिम्मतसिंह ने एक बार गांव में रात्रि विश्राम किया। जहां ग्रामीणों द्वारा यहां पैदा होने वाले हाकरिया (शंकरकंद) परोसा गया। जिसकी मिठास से प्रभावित होकर इसका नाम हाकरिया किया गया। जो अब साकरिया के नाम जाना जाता है। इसके बाद से ही पक्षियों के दाना चुगाने की प्रथा शुरू हुई।
दाना डालने की व्यवस्था
गांव स्तर पर पक्षियों के लिए प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व दाना डालने की जिम्मेदारी रमेश व्यास एवं परिवार सदस्य दीक्षित, चित्रेश, यामिनी आदि निभा रहे हैं। बताया कि प्रतिदिन 10 से 15 किलो अनाज मंदिर एवं मठ की छत पर रखा जाता है। इसी क्रम में पाराहेड़ा गांव के ग्रामीणों द्वारा भी पिछले कई वर्षो से पक्षियों का दाना चुगाने की प्रथा कायम रखी है। जो कि एक मिसाल है।

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