अमूमन उपचार के लिए बांसवाड़ा से रोज बड़ी संख्या में यात्री अहमदाबाद जाते हैं। इस लिहाज से महत्त्वपूर्ण होते हुए भी इस महीने इस रूट की अनुबंधित बसों के सुबह-शाम के दो शिड्यूल कई बार ठेकेदार की मनमानी के चलते रोक दिए गए। यही नहीं, अरथूना मार्ग पर पांच-सात दिन से बस संचालन ठप है। इसके अलावा डूंगरपुर की तीन और दाहोद की गाडिय़ां भी ठेकेदार ने नहीं चलाई।
निगम प्रबंधन की भीतर खाने भी हालत पतली है। 57 गाडिय़ां हैं, लेकिन ये भी सामान नहीं मिलने पर दूसरी बिगड़ी गाडिय़ों से स्पेयर पाट्र्स निकालकर जैसे-तैसे चलाई जा रही हैं। सभी शिड्यूल व्यवस्थित चलाने निगम को 135 चालक चाहिए, लेकिन यहां 103 ही हैं। परिचालक तो 134 के मुकाबले 95 ही होने से चालकों को परिचालक बनाकर भेजा जा रहा है। इसके अलावा वर्कशॉप में 77 स्वीकृत तकनीकी अधिकारियों-कर्मचारियों के पदों के मुकाबले यहां मात्र 21 लोग है, जबकि मंत्रालयिक कर्मचारी भी 45 पदों के विरुद्ध एक तिहाई से कम यानी 15 ही हैं। इस वर्ष में अब तक 15 कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं, वहीं 9 अन्य दिसंबर तक घर लौटने तय हैं। इनकी एवज में नए आने के कोई आसार नहीं दिखते, जिससे आगार में मानव संसाधन का संकट और गहराना तय है।
यहां कबाड़ बनी अनुबंधित बसें मयखाना बनी हुई है। फटी सीटें, टूटे कांच और खराब इंजन के कारण आगार परिसर में खड़ी कर दी गई इन बसों का इस्तेमाल खाने-पीने में हो रहा है। भूल से कोई यात्री अपने गंतव्य की गाड़ी समझकर इनमें घुस जाए, तो जी-घबराने की शिकायत के साथ फौरन उल्टे पांव भागता है। इस स्थिति पर भी निगम प्रशासन मौन है। कारण साफ है कि ठेकेदार पर उसका कोई अंकुश नहीं है।
– रोडवेज से समय पर भुगतान समय पर नहीं मिलने से 20 गाडिय़ों के रखरखाव और चालकों के वेतन का जुगाड़ करके जैसे-तैसे काम चला रहे हैं। जून का ढाई लाख रुपए भुगतान पिछले सप्ताह मिला। जुलाई का जयपुर मुख्यालय से अटका है।
विजयकुमार प्रबंधक ठेका फर्म
रविकुमार मेहरा मुख्य प्रबंधक बांसवाड़ा रोडवेज आगार