scriptबांसवाड़ा : अस्प्ताल की व्यवस्थाएं बनी मरीजों के लिए मुसीबत, कभी 06 तो कभी 30 घंटे बाद मिल पाता है मरीज को उपचार | Trouble for Hospitalized Patients | Patrika News

बांसवाड़ा : अस्प्ताल की व्यवस्थाएं बनी मरीजों के लिए मुसीबत, कभी 06 तो कभी 30 घंटे बाद मिल पाता है मरीज को उपचार

locationबांसवाड़ाPublished: Aug 03, 2018 02:03:56 pm

Submitted by:

Ashish vajpayee

www.patrika.com/rajasthan-news

banswara

बांसवाड़ा : अस्प्ताल की व्यवस्थाएं बनी मरीजों के लिए मुसीबत, कभी 06 तो कभी 30 घंटे बाद मिल पाता है मरीज को उपचार

बांसवाड़ा. महात्मा गांधी अस्पताल प्रबंधन की व्यवस्थाएं मरीजों के लिए परेशानी की सबब बनी हुई है। उपचार की आस में अस्पताल पहुंचने वालों को पर्ची काउंटर से लेकर चिकित्सक तक पहुंचने में ही संघर्ष करना पड़ जाता है। उसके बाद यदि चिकित्सक कहीं मरीजों को जांच लिख दे तो फिर उपचार शुरू होने में ही घंटों देरी हो जाती है। कई मरीजों की शिकायत पर जब पत्रिका टीम ने बुधवार और गुरुवार को महात्मा गांधी अस्पताल स्थित लैब के बाहर पड़ताल की तो हालात चौंंकाने वाले मिले। पेश है रिपोर्ट –
11 बजे के बाद नहीं लेते सैंपल
घड़ी में 11 बजे नहीं कि उधर लैब का शटर डाउन। फिर चाहे मरीज कुशलगढ़ से आया हो या पीपलखूंट से कार्मिकों को कोई मतलब नहीं। सुबह 11 बजे के बाद वो सैंपल नहीं लेंगे। गुरुवार को 55 वर्षीय सुखी पत्नी नाना चक्कर आने, कमजोरी आदि के उपचार के लिए महात्मा गांधी अस्पताल पहुंची। चिकित्सक ने उन्हें खून एवं अन्य जांच के लिए लिखा। लेकिन लैब तक पहुंचते- पहुंचते घड़ी 11 बजकर 5 मिनट बताने लगी। काउंटर पर पहुंचने पर उसे यह कह कर लौटा दिया गया कि शुक्रवार को आना। यानी कि जांच के बाद जो दवा कुछ घंटों में शुरू हो जाती। वो अब दूसरे दिन शाम को तकरीबन 30 घंटे बाद शुरू हो सकेगी। क्योंकि 24 घंटे बाद शुक्रवार सुबह वो लैब में सैंपल देगी और उसी दिन शाम को चार बजे तकरीबन 7 घंटे बाद उसे रिपोर्ट मिलेगी। जिसके बाद रिपोर्ट देखकर ही चिकित्सक सही उपचार शुरू कर सकेंगे। तब तक मरीज की बीमारी बढ़़े तो बढ़े।
गर्भवती के लिए नियम अलग नहीं
नौ माह के गर्भ से बोरबट निवासी मनु पत्नी मुकेश गुरुवार को लैब में जांच कराने के लिए पहुंची। उसका सैंपल भी लिया गया, लेकिन वो अभी लैब के बाहर बैठी चार बजने का इंतजार करती नजर आई। पूछने पर उसने बताया कि रिपोर्ट के लिए इंतजार कर रहे हैं, घर इसलिए नहीं जा सकते कि बार-बार आने में तकलीफ होती है, सो इंतजार कर लेंगे और शाम को डॉक्टर को दिखाने के बाद घर चले जाएंगे। गर्भवती छह घंटे बैठने पर मजबूर हुई।
वार्ड से सैंपल लाना भी मरीजों की ही जिम्मेदारी
जांच की परेशानी सिर्फ ओपीडी के मरीजों के लिए ही नहीं है बल्कि वार्ड में भर्ती मरीजों के लिए भी है। क्योंकि यहां मरीजों के परिजनों को खुद ही सैंपल लेकर लैब तक जाना पड़ता है। जिस कारण लैब ढूंढने से लेकर सैंपल की गुणवत्ता तक कई परेशानियां तीमारदारों और लैब कार्मिकों को होती हैं। बुधवार को फिमेल वार्ड में भर्ती सूरज पत्नी श्याम भुज का तीमारदार ब्लड सैंपल जोर -जोर से हिलाते हुए लैब पहुंचा। उसे ऐसा करते देख लैब प्रभारी ने उसे सैंपल न हिलाने की बात ही।
सैपंल हिलाने से यह पहुंचता है नुकसान
लैब प्रभारी विश्वास डोडियार ने बताया कि ब्लड में मुख्यतौर पर लाल रुधिर कणिकाओं, श्वेत रुधिर कणिकाओं और सीरम के जरिए जांच होती है। सैंपल को जोर-जोर से हिलाने से श्वेत रुधिर कणिकाएं टूट कर सीरम में मिल जाती हैं। जिससे जांच रिपोर्ट पर असर पड़ता है। साथ ही बताया कि 11 बजे बाद सैंपल न लेने का प्रावधान पूरे राजस्थान में है। इसलिए यहां पर भी सैंपल लेना बंद कर देते हैं।
करते हैं व्यवस्था
जांच रिपोर्ट को लेकर मरीजों को परेशानी आती है। जिसको लेकर उच्चाधिकारियों से चर्चा कर समाधान निकाला जाएगा। वार्ड से लैब में भेजे जाने वाले सैंपल को लेकर भी व्यवस्था करेंगे। लेकिन चतुर्थ श्रेणी कार्मिकों की कमी आड़े आती है। लेकिन प्रयास अवश्य किए जाएंगे।
डोर्थी पॉवेल, नर्सिंग अधीक्षक
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो