केस 2
आठ माह के बच्चे को कुपोषण के चलते एमटीसी वार्ड में भर्ती कराया गया जिसके शरीर में 2 ग्राम ही हीमोग्लोबीन था। जिसके चलते तत्काल एक यूनिट खून चढ़ाना पड़ा। इसके बाद ही उसका उपचार शुरू किया जा सका।
आठ माह के बच्चे को कुपोषण के चलते एमटीसी वार्ड में भर्ती कराया गया जिसके शरीर में 2 ग्राम ही हीमोग्लोबीन था। जिसके चलते तत्काल एक यूनिट खून चढ़ाना पड़ा। इसके बाद ही उसका उपचार शुरू किया जा सका।
बांसवाड़ा. यह चंद उदाहरण महात्मा गांधी चिकित्सालय में आने वाले उन मरीजों के हैं जिनके शरीर में रक्ताल्पता पाई गई। जनजाति बहुल बांसवाड़ा जिले में कुपोषण निवारण के नाम पर हर साल लाखों रुपए का बजट खप जाता है, लेकिन रक्ताल्पता की बीमारी जस की तस है। यही कारण है कि हर साल शरीर में खून की कमी से ग्रस्त मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है, लेकिन निवारण की दिशा में प्रयास नाकाफी हैं।
तीन साल में 33 सौ से अधिक आए मरीज महात्मा गांधी चिकित्सालय प्रशासन की ओर से गत तीन सालों के दौरान यहां उपचार कराने के लिए आए मरीजों की केस स्टडी में यह पाया गया कि तीन साल में 3 हजार 394 मरीजों की जांच में रक्ताल्पता पाई गई। केस स्टडी में चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि हर साल मरीजों की संख्या बढ़ती गई।
क्यों है हीमोग्लोबीन आवश्यक किसी भी व्यक्ति को सेहतमंद बने रहने के लिए शरीर में पर्याप्त मात्रा में आयरन और प्रोटीन आवश्यक है। अस्थिमज्जा में ही विटामिन बी-6 यानी पाइरिडॉक्सिन की उपस्थिति में लोहा, ग्लाइलिन नामक एमिनो एसिड से संयोग कर हीम नामक यौगिक बनाता है जो ग्लोबिन नामक प्रोटीन से मिलकर हीमोग्लोबीन बनाता है। हीमोग्लोबीन रक्त का मुख्य प्रोटीन तत्व है। स्वस्थ पुरुष के शरीर में 15 ग्राम एवं महिला के शरीर में 13.6 ग्राम हीमोग्लोबीन होना चाहिए। इससे कम मात्रा में हीमोग्लोबीन होने की स्थिति में कई तरह की बीमारियां होने का खतरा बना रहता है।
वर्ष रक्ताल्तपता से शिकार मरीजों की संख्या प्रतिशत
2014 637 10.1
2015 1395 19.34
2016 1362 21.46
2014 637 10.1
2015 1395 19.34
2016 1362 21.46