scriptबांसवाड़ा : हिन्दी भाषा के संवर्धन में वागड़ अंचल भी पीछे नहीं, सोशल मीडिया पर भी सक्रिय हैं रचनाकार | Wagad's contribution to the promotion of Hindi language | Patrika News

बांसवाड़ा : हिन्दी भाषा के संवर्धन में वागड़ अंचल भी पीछे नहीं, सोशल मीडिया पर भी सक्रिय हैं रचनाकार

locationबांसवाड़ाPublished: Sep 14, 2018 12:43:06 pm

Submitted by:

Ashish vajpayee

www.patrika.com/banswara-news

banswara

बांसवाड़ा : हिन्दी भाषा के संवर्धन में वागड़ अंचल भी पीछे नहीं, सोशल मीडिया पर भी सक्रिय हैं रचनाकार

बांसवाड़ा. राजस्थान के दक्षिणांचल में अवस्थित वागड़ अंचल की बोली ‘वागड़ी’ है। लिपि देवनागरी होने से वागड़ में साहित्य को ‘वागड़ी’ में वर्षों से प्रचारित-प्रसारित भी किया जा रहा है। वहीं हिन्दी साहित्य के संवद्र्धन और रचनाधर्मिता में यह अंचल देश-प्रदेश के हिन्दी क्षेत्रों से कहीं कमतर नहीं हैं। हमारे साहित्यकारों, रचनाकारों की गद्य व पद्य में रचित पुस्तकें हिन्दी को और आगे ले जाने की दिशा में अपनी अहम भूमिका निभा रही हैं। जनचेतना को जाग्रत करने में हमारे अंचल के साहित्यकारों की ओर से समय-समय पर पुस्तकों का प्रकाशन हुआ है। साहित्यकारों की पुस्तकें वागड़ी में प्रकाशित हुई हैं तो हिन्दी में प्रकाशित पुस्तकों की भी वृहद श्रृंखला है जो अंचल के साहित्यिक विकास का दिग्दर्शन कराती हैं। हमारे यहां संत मावजी की आगलवाणियां हिन्दी में रूपान्तरित होकर मेघसागर, प्रेमसागर, सामसागर और रतनसागर ग्रंथ के रूप में सामने आई। वहीं खण्ड काव्य, निबंध, कहानी संग्रह, काव्य संग्रह भी साहित्यकारों के लिए रुचि का विषय रहे हैं।
इन रचनाकारों ने बढ़ाया मान
हिन्दी लेखन में हिम्मतलाल तरंगी, मणि बावरा, भूपेंद्र उपाध्याय तनिक, धनपतराय झा, डा. शंकरलाल त्रिवेदी, डा. नवीनचंद्र याग्निक, वीरबाला भावसार, अशोक पंड्या, भरतचंद्र शर्मा, घनश्यामसिंह भाटी, कृष्णा भावसार, डा. निर्मला शर्मा, डा. दीपकदत्त आचार्य, हरिहर झा, सुमित्रा मेहता, प्रकाश पंड्या प्रतीक, बिस्मिल नक्शबंदी, सईद रोशन, दिनेश पंचाल, नीता चौबीसा, दीपिका द्विवेदी दीप, आभा मेहता आदि ऐसे नाम हैं, जिन्होंने इस अंचल में हिन्दी रचनाधर्मिता को देश-विदेश तक पहुंचाकर मान बढ़ाया है। समय-समय पर विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं के माध्यम से प्रकाशित होने वाले काव्य संग्रहों और काव्य गोष्ठियों ने भी अंचल के साहित्यकारों के हिन्दी प्रेम को सार्वजनीन किया है।
सोशल मीडिया पर भी सक्रिय
अंचल के रचनाकार वर्तमान दौर में साहित्य और तकनीकी के संगम से हिन्दी का प्रचार-प्रसार इसे प्रतिष्ठित कर रहे हैं। युवा रचनाकारों के साथ ही वरिष्ठ साहित्यकार भी सोशल मीडिया पर साहित्यिक समूह बनाकर अपनी हिन्दी रचनाधर्मिता को नए आयाम देने में जुटे हुए हैं। वहीं फेसबुक जैसी आभासी दुनिया पर बने साहित्यिक समूहों में सतत हिन्दी की सेवा कर रहे हैं। वर्तमान में हिन्दी साहित्य सेवा की जो गति है, उससे स्पष्ट है कि अंचल में हिन्दी का साहित्यिक सफर अनवरत बना रहेगा।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो