उन्होंने साहित्य के प्रति शुरुआती दिनों को याद करते हुए बताया कि उनके पिता पुस्तकालय से प्रसाद, निराला, आचार्य चतुरसेन और प्रेमचंद का साहित्य घर लाते थे, जिनको वे चोरी-छिपे पढ़ते थे। उसी समय पन्नालाल पटेल का साहित्य भी पढऩे मिला, जिससे साहित्य के प्रति रूचि जाग्रत हुई। वागड़ी में लिखने के लिए डा. जयप्रकाश ज्योतिपुंज और उपेन्द्र अणु ने प्रेरित किया। दोनों से परिचय चाचा सत्यदेव ‘सत्येश’ ने कराया। कहानी विधा के महत्व को रेखांकित कर पंचाल ने बताया कि कविता लोकप्रिय साहित्यिक विधा है, लेकिन कहानियां पाठक के जेहन में लंबे समय तक रहती हैं। कहानियों में लेखक हर पहलू को छूता है। उनकी कई कहानियों की मौलिकता पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि इसका प्रमुख कारण नियमित ध्यान करना है।
पंचाल ने मावजी महाराज, गवरी बाई, संत दुर्लभराम, मुनि कुंथुसागर के योगदान को वागड़ी साहित्य का प्रमुख उद्गम बताया। पंचाल ने जनजाति अंचल की संस्कृति से ओतप्रोत कहानी हुलकू, कागद नुं नावडू, प्रणय कहानी अजुवारी रातर आदि की रचना प्रक्रिया की जानकारी देते हुए ठेठ वागड़ी शब्दों के संरक्षण की प्रतिबद्धता दर्शाई। कार्यक्रम में प्रबोध गोविल, राधामोहन, जितेन्द्र निर्मोही, अखिल भारतीय पंचाल महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री एम.सी.पंचाल और राजस्थान पंचाल महासभा के पदाधिकारी, युवा साहित्यकार और शोधार्थियों की उपस्थिति रही। प्रारंभ में अनुराग सोनी ने पंचाल और सतीश आचार्य का परिचय प्रस्तुत किया। इस अवसर पर फाउण्डेशन की तरफ से प्रतीक चिन्ह और पंचाल महासभा की तरफ से अभिनंदन किया गया। आभार प्रमोद शर्मा ने आभार व्यक्त किया।