बांसवाड़ा. अगर आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जिंदा होते और बांसवाड़ा जिले के इस सबसे बड़े अस्पताल के हाल देख लेते तो तुरंत अपना नाम यहां से हटवा देते। कुछ ऐसा ही आपको भी महसूस होगा अगर आप भी एमजी अस्पताल के यह हाल देख लोगे तो। महात्मा गांधी अस्पताल के वार्डों में कार्मिकों की बेपरवाही मरीजों और तीमारदारों के लिए नई समस्या बनती जा रही है। अस्पताल के वार्डों में बायोवेस्ट को सामान्य कचरे के साथ ही संग्रहण किया जा रहा है। वहीं वार्डों में जहां-तहां मरीज को लगाई सीरिंज हो या बैंडेज आदि बायोवेस्ट पड़ा है। बायोवेस्ट से नुकसान और संक्रमण को भलिभांति जानने के बाद भी अस्पताल प्रबंधन कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा है। इससे मरीजों और तीमारदारों के संक्रमित होने की आशंका गहरा रही है।
सामान्य कचरे के साथ बायोवेस्ट भी
अस्पताल के वार्डों में बायोवेस्ट को इधर-उधर तो फैंका ही जा रहा है, सामान्य कचरे को भी अलग नहीं रखा जा रहा है। बायोवेस्ट और सामान्य कचरे को वार्डों से संग्रहित कर एक साथ ही फेंका जा रहा है। जो बारिश के दिनों में इंसानों के लिए घातक तो है ही, मवेशियों के लिए भी मौत की सौगात है। अस्पताल परिसर में फेंके गए कचरे के ढेर में मवेशियों को हर समय मुंह मारते देखा जा सकता है।
सामग्री उपलब्ध, उपयोग नहीं
अस्पताल के सभी वार्डों में काली, हरी, लाल और सफेद रंग के कचरा पात्र मुहैया कराए हुए हैं। बायोवेस्ट के आधार पर रंगों का विभाजन किया था। रंगों के अनुसार तय कचरा पात्र में ही संबंधित बायोवेस्ट डालने का प्रावधान है, लेकिन अस्पताल के वार्डों में इसे नजर अंदाज किया जा रहा है।