पशुपालन विभाग ने लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले में पशुओं में नस्ल सुधार पर प्रयोग के लिए प्रयोगशाला स्थापित की है। यहां अच्छी नस्ल की गायों और सांडों पर प्रयोग किया जा रहा है। मल्टी ओवुलेशन एम्ब्रयो ट्रांसफ़र तकनीक से नस्ल सुधार पर काम किया जा रहा है। प्रयोगशाला में मुख्य रूप से मल्टी ओवुलेशन एम्ब्रयो ट्रांसफ़र तकनीक (एमओईटी) से नस्ल सुधार पर काम किया जा रहा है। इसमें गाय के गर्भाशय में ही भ्रूण डेवलप किया जाता है। इसके बाद उसे पूरी तरह से स्वस्थ गाय में प्रत्यारोपित किया जाता है। भ्रूण जब लोग करने वाली गाय को डोनर और भ्रूण धारण करने वाली गाय को सरोगेट कहा जाता है।
53 गायों पर प्रयोग, 4 पर सफलता एमओईटी में सफलता के बाद यहां के विशेषज्ञों ने 53 गायों पर प्रयोग किया जिनमें से चार पर सफलता मिली। 53 गायों के भ्रूण तैयार किए गए। इनमें 4 ने चार बच्चों को जन्म दिया। इस तकनीक पर काम करने वाले डॉक्टर संतोष यादव कहते हैं कि इस विधि में टेस्ट ट्यूब को विकसित किया जाता है और उसे गाय के गर्भाशय में प्रत्यारोपित करते हैं। फिलहाल यह प्रयोग साहीवाल नस्ल की गाय पर किया जा रहा है।
कौन होती है साहीवाल नस्ल की गाय भारत के हरियाणा पंजाब और सिंध प्रांत के क्षेत्रों में पाई जाने वाली साहीवाल नस्ल की गाय सबसे अधिक दूध देने वाली मानी जाती हैं। इनके दूध में जर्सी और साधारण गाय से अधिक मात्रा में चिकनाहट पाई जाती है। इसलिए किसान ज्यादातर मुनाफे के लिए इन गायों को पालते हैं।