अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी व नोडल डा. आरसी वर्मा ने फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के तहत रविवार को प्रथामिक स्वास्थ्य केन्द्र बेलहरा में करीब 32 व सूरतपुर में 26 को लोगों को दवा खिलाकर अभियान का शुभारम्भ किया। पीएचसी त्रिलोकपुर में अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा राजाराम सिंह ने दवा खिलाकर शुभारम्भ किया। साथ ही पीएचसी फत्हेपुर में डा अजय वर्मा, पीएचसी छेदा में डा राजर्षी त्रिपाठी, ऊधौली पीएचसी में डा विनोद कुमार, पीएचसी दरियाबाद में डा कैलाश शास्त्री, पीएचसी रेन्दुआ पल्हरी में डा कुलदीप मौर्य एवं पीसीआई के एसएमसी इन्द्रेश सिंह ने मुख्यमंत्री जन अरोग्य मेले में फीता काटने के बाद डीईसी व एलवेण्डाजाल की दवा खिलाकर अभियान का शुभारम्भ किया।
कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डा. वर्मा ने बताया कि राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत लिम्फैटिक फाइलेरियासिस के उन्मूलन के लिए 17 से 29 फरवरी तक 31 जिलों में मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) राउंड चलाने जा रही है। यह एमडीए/आईडीए 2019-20 कार्यक्रम का द्वितीय चरण है। बाराबंकी उन 31 जिलों में से है, जो स्थानीय रूप से फाइलेरिया से प्रभावित है। इस दौरान स्वास्थ्यकर्मी घर घर जाकर फाइलेरिया से बचाव के लिए दवाएं लोगों तक उपलब्ध कराएंगे। डीईसी दवा 2-5 वर्ष के बच्चों को एक गोली एवं 15 वर्ष व उससे अधिक को 3 गोली खिलाई जाएगी। यह दवा 02 वर्ष से छोटे बच्चो, गर्भवती महिलाओ, गंभीर रोग से ग्रसित व्यक्तियो एवं अत्यंत वृद्ध व्यक्तियो को नही खाना है । पेट में कीड़े की दवा एल्बेंडाजाल 2 वर्ष से ऊपर सभी व्यक्ति को एक गोली भोजन करने के बाद ही खानी है।
क्या है लिम्फैटिक फाइलेरियासिस फाइलेरिया, या हाथीपांव, रोग एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्या है। यह एक दर्दनाक रोग है जिसके कारण शरीर के अंगों में सूजन आती है, हालांकि इस रोग से आसानी से बचा जा सकता है। यह रोग मच्छर के काटने से ही फैलता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार फाइलेरिया दुनिया भर में दीर्घकालिक विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है। आमतौर पर बचपन में होने वाला यह संक्रमण लिम्फैटिक सिस्टम को नुकसान पहुंचाता है और अगर इसका इलाज न किया जाए तो इससे शारीरिक अंगों में असामान्य सूजन होती है। फाइलेरिया से जुड़ी विकलांगता जैसे लिंफोइडिमा (पैरों में सूजन) और हाइड्रोसील (अंडकोष की थैली में सूजन) के कारण पीड़ित लोगों को अक्सर सामाजिक बोझ सहना पड़ता है, जिससे उनकी आजीविका व काम करने की क्षमता भी प्रभावित होती है।
एमडीए की दवा से कई लाभ फाइलेरिया से बचाव के साथ एमडीए दवाइयों से कई दूसरे लाभ भी हैं, जैसे यह आंत के कृमि का भी इलाज करती है जिससे ख़ासकर बच्चों के पोषण स्तर में सुधार आता है और उनके शारीरिक और मानसिक विकास में मदद मिलती है। एमडीए के दौरान डब्ल्यूएचओ से अनुशंसित की गई दवाइयां, डाइथेलकार्बामोजाइन साइट्रेट (डीईसी) और अलबेंडाजोल को उन सभी लोगों, फाइलेरिया के संक्रमण से बचाव के लिए उपलब्ध करायी जा रही है, जिन्हें इस रोग के होने का खतरा है । इस रोग के संक्रमण को कम करने के लिए यह दवाई ऐसे क्षेत्र में रहने वाले सभी लोगों को खिलाई जाती है। प्रभावित क्षेत्र में रह रहे समुदाय में सभी लोगों को फाइलेरिया के संक्रमण होने का खतरा बना रहता है, इसलिए यह जरूरी है कि सभी लोग फाइलेरिया रोधी दवाइयों का सेवन जरूर करें।
अभियान में लगाई गई 4080 टीम उन्होंने बताया बाराबंकी समेत उत्तर प्रदेश के 51 जिलों में फाइलेरिया (हाथीपांव) रोग स्थानीय रूप से फैली हुई है। अभियान में 2 से 5 साल तक के 28.86 हजार, 6 से 14 साल तक के 82.99 हजार, 15 साल से ऊपर के 19.48 हजार समेंत लक्षित कुल जनसंख्या 36 लाख 67 हजार है। इसको लेकर 36.84 लाख की आबादी को कवर किया जाएगा। कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए जिले की 4080 आशा, एनम, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता शामिल है।