शिक्षक ने नहीं गाया राष्ट्रगीत मामला है बाराबंकी के बंकी कस्बे में स्थित मदरसा अरबिया हनीफुल उलूम की । जहां आज गणतन्त्र दिवस का भव्य आयोजन किया गया था। इस दौरान राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ पूरी तन्मयता से गाया जा रहा था, लेकिन यह देख मीडियाकर्मी हैरान हो गए कि वहां पर मौजूद एक भी शिक्षक गाना तो दूर उनका मुंह भी नहीं हिल रहा था।
नहीं गा पाए राष्ट्रगान लगभग पांच सौ बच्चों को शिक्षा देने वाला और लगभग पन्द्रह अध्यापकों को शिक्षा की अलख जगाने के काम में लगाने वाला यह मदरसा धार्मिक के साथ-साथ सभी जरूरी विषयों पर शिक्षा देने का काम करता है। राष्ट्रगान समाप्त होने के पश्चात जब मदरसे के प्रिंसिपल मोहम्मद शफीक से राष्ट्रगान गाने को कहा गया, तो उन्हें राष्ट्रगान भी सही से नहीं याद था।
कहा- मना है इस्लाम में इसके बाद जब प्रिंसिपल से राष्ट्रगीत ‘वन्दे मातरम’ के बारे में पूछा गया, तो उनका जवाब चौंका देने वाला रहा। उन्होंने कहा कि इस्लाम में यह मना है और इसलिए हम किसी की भी आराधना नहीं कर सकते। यही कारण है कि हमने ‘वन्दे मातरम’ न ही कभी गाया और न गा सकते है। कार्यक्रम के दौरान मंच से देश प्रेम की बड़ी बड़ी बातें करने वाले प्रिंसिपल की यह बातें सुनकर होश उड़ गए।
इस घटना से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि मदरसा शिक्षा तो आधुनिक हो रहा है मगर मदरसा शिक्षक न तो आधुनिक हो रहे है ना ही देश के मूलभाव पन्थ निरपेक्षता का पाठ ही पढ़ रहे है । ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि आखिर सरकार की ओर से अब कौन सी कोशिश हो जो मदरसा इस कट्टरवाद से निकल कर बाहर आ सके। जब शिक्षकों के अन्दर से उनकी नकारात्मक छवि बाहर नहीं आ पा रही तो बच्चों के दिल से वह नकारात्मक छवि कैसे निकाल पाएंगे । क्या सरकार के डर से जबरन राष्ट्रभक्ति सम्भव हो पाएगी ।