आपको बता दें कि मेंथा की सबसे ज्यादा पैदावार यूपी में होती है। देश में होने वाले कुल मेंथा ऑयल के उत्पादन में यूपी की हिस्सेदारी करीब 80 फीसदी है। जबकि यूपी के बाराबंकी में ही करीब 33% मेंथा आयल का उत्पादन होता है। सिर्फ बाराबंकी जिले में 40 से करोड़ रुपए के मेंथा आयल की बिक्री होती है। ऐसे में मेंथा ऑयल (Mentha Oil Rate Today) के रेट बढ़ने पर बाराबंकी के किसानों का सबसे ज्यादा फायदा होता है। क्योंकि आकड़ों की अगर मानें तो बाराबंकी जिले के 75 परसेंट क्षेत्रफल में मेंथा की खेती की जाती है।
मेंथा की फसल से किसान हो रहे मालामाल बाराबंकी के किसानों की अगर मानें तो मेंथा की खेती किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने में सहायक साबित हो रही है। किसानों को आत्मनिर्भर बनने का मौका मिला है। हम बड़े पैमाने पर मेंथा की खेती करते अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। किसानों के मुताबिक इस खेती को करने में प्रति एकड़ औसतन लागत 15-20 हजार रुपए की लागत आती है। किसानों के मुताबिक एक एकड़ में करीब 50 से 60 किलोग्राम मेंथा आयल तैयार हो जाता है और फसल तैयार हो जाने पर व्यापारी खुद आकर अच्छे दाम देकर मेंथा आयल ले जाते हैं। ऐसे में ऊंचे रेट पर अगर हमारा मेंथा ऑयल बिक जाता है तो खेती का ये सौदा काफी फायदे का साबित होता है।
जिले में मेथा की खेती सबसे ज्यादा आंकड़ों की अगर मानें तो बाराबंकी जिले के 75 परसेंट क्षेत्रफल में मेंथा की खेती की जाती है। बाराबंकी जिला पूरे उत्तर प्रदेश में अकेले 33% मेंथा आयल का उत्पादन करता है। वहीं खेती के जादूगर के नाम से अपनी पहचान बनाने वाले बाराबंकी के पद्मश्री प्रगतिशील किसान रामसरन वर्मा के मुताबिक जिले में मेथा की खेती सबसे ज्यादा होती है। इस खेती में बहुत ज्यादा फर्टिलाइजर की जरूरत भी नहीं होती। उन्होंने बताया कि मेंथा की बुआई की प्रक्रिया फरवरी महीने में शुरू होती है। घोसी प्रजाति की मेंथा की खेती सबसे ज्यादा मुनाफा देती है। लगभग 90 दिनों के अंदर किसान मेंथा की खेती से ऑयल निकाल लेते हैं। रामसरन ने बताया कि मेंथा की खेती में किसी जंगली जानवर का डर नहीं होता, क्योंकि वह इसे खाते नहीं हैं। राम सरन वर्मा ने बताया कि सिर्फ बाराबंकी जिले में 40 से करोड़ रुपए के मेंथा आयल की बिक्री होती है।